Raaghavendra

Raaghavendra

Saturday, March 5, 2011

Chhala, the cunning deceit - a long story plot for making film

फिल्म्‌ बनाने के उद्‍देश्य से रचयिता राघवेन्द्र कश्‍यप द्वारा लिखा गया यह विस्तृत कथा-प्लौट्‍ काल्पनिक है...समाज में आये दिन सुनने जानने में आ रही विविध घटनाओं का मिश्रण कर यह एक मनोरंजक कहानी गढी गयी है जिसमें थ्रिल्‌ है रोमांस्‌ है रिवेंज्‌ आदि है...अर्थात्‌ रोमांच है प्रेमप्रसंग है प्रतिशोध आदि है.....इस कथा में सेक्सी कथनों व घटनाओं का बाहुल्य है जिसे जागरुक अध्येता अप्रिय नहीं मानेंगे क्योंकि समाज की छुपी वास्तविकता को उजागर करना एक अच्छे लेखक का कर्तव्य है....
छल, The Cunning Deceit
 लेखक - राघवेन्द्र कश्यप
दृश्य १ - जय एक बस्‌स्टैण्ड्‍ पर बस्‌ की प्रतीक्षा कर रहा है। तभी एक कार्‌ आकर रुकती है। उसमें से एक सुन्दरी युवती जयती निकलती है। वह सामने के औफ़िस्‌ की ओर बढती है। जय (मन में) - ‍’आह्‌! इसकी तुलना पिपर्‌मिण्ट्‍ की गोली से करना पूर्णतया उचित जान पडता है....दोनों ही सुखद सनसनी ला देते हैं.... एक चूसने पर....एक चूसे विना ही.... देख लेना ही पर्याप्‍त है....’ जय उसे बडे प्रेम से जाता देख रहा है। द्वितीय दिन तृतीय दिन भी वैसे ही उसे जाता देख रहा है - उसकी कल्पना में एक गाना आरम्भ हो जाता है - तेरे विन कटती न एक यामिनी, मेरे नयनों में बसी एक भामिनी....अकस्मात्‌ मुझे तेरा यहां दर्श हो गया, लगता नया मिलन नहीं वर्षों वर्ष हो गया.............इस गाने के अन्त तक में वह जयती संग विवाह हो रहे होने की कल्पना कर रहा है। गाने के अन्त के साथ ही एक बस्‌ आकर रुकती है जिसका नम्बर्‌ देख वह उसमें चढ जाता है।
दृ‌‌श्य २ - औफिस्‌ में उसका सहकर्मी मित्र विजय मिलता है। दोनों हाथ मिलाते हैं, विजय पूछता है- "जय, क्या बात है? अभी प्रथम दिन तो तुमने विलम्ब से आने का जो कारंण बताया वह समझ में आया.... पर यह लगातार पांचवां दिन है?" जय - (मुंह खोल सांस लेते हुए) आह्‌....क्या बताउं, इस विलम्ब की अवधि में मुझे कितना आनन्द आता है....कितना फ्रेश्‍नेस्‌ फील्‌ करता हूं जब उसका चित्र मेरे मन में उभरता है...." विजय आश्‍चर्य से उसकी ओर देखता है-"कोई मनोमोहिनी मिल गयी यह तो बात समझ में आयी....पर उसका लेट्‍ आने से क्या सम्बन्ध?" जय - "क्या बताऊं वह कितना मेरे मन को भाती है...." विजय कुछ अप्रसन्नता से- "पर उसका लेट्‍ आने से क्या सम्बन्ध?" जय-"वह दस बजे के निकट ही अपने कार् से उतरती है उस बस्‌स्टौप्‌ पर जहां मैं बस्‌ पकडता हूं....अब उसे देखना हो तो दस बजे तक वहां मुझे प्रतीक्षा करनी ही होगी...." विजय - "चलो, यह एक अच्छा समाचार सुनने को मिला कि अब श्रीमान्‌ जय विवाहित होने जा रहे हैं, नहीं तो हमें तो सन्देह था कि आप कभी विवाह करेंगे, कोई भी इतना नहीं मन भा पाने के कारण...." जय- "हूं....परन्तु मैं उसके सम्बन्ध में अभी कुछ भी नहीं जानता...." विजय - कहो तो हम तुम्हारी इस सम्बन्ध में सहायता कर दें...." जय ’हूं....’ कह अपने कार्य में लग जाता है।
दृश्य ३ - जयती कार से उतरकर यूनिवर्सिटी औफिस्‌ की ओर बढती है। जय सामान्य गति से उसके पीछे-पीछे जा रहा है। जयती औफिस्‌ के एक कक्ष में घुसती है, जय बाहर ही खडा है। चार-पांच मिनट्‌ पश्‍चात्‌ वह बाहर निकलती है। जय - "एक्स्क्यूज्‌ मी....यह कौन-सा औफिस्‌ है?" जयती - "यू मीन्‌ यह कौन-सा रूम्‌ है? यह उपस्थिति कक्ष - ऎटेण्डेंस्‌ रूम्‌ है।" जय - "पर ये कैसा औफिस्‌ है? अर्थात्‌ यहां क्या काम होता है?" जयती - "व्हाट्‌! आप कहां आये हैं? और...काम क्या है?" जय - "ऐक्चुअलि मैं आया तो यहीं...यूनिवर्सिटी औफिस्‌ में.... पर....काम कुछ कठिन ही जान पडता है.... आपसे सहायता मिल सकती क्या? क्या करती हैं आप यहां?" जयती-(मन में)’व्यक्‌ति तो अच्छा जान पडता है...’ "मैं यहां लेक्चरर्‌ हूं...." जय-(मन में)’कितनी प्यारी और भोली जान पडती है....सीधे बोल दूं क्या....मुझे इससे तो कुछ भी भय फील्‌ नहीं हो रहा....’ "आपका विवाह हो गया है?" जयती-(मन में)’देखने में तो बडा हैण्ड्‌सम्‌ और हेल्थी बौडी का है, पर करता क्या होगा?’ "नहीं....व्हाट्‍स्‌ योर्‌ प्रोफेसन्‌?" जय-"आइ एम्‌ अ सीनियर्‌ एडीटर्‌ इन अ रेप्यूटेड्‌ कम्पनी, आल्‌मोष्‍ट्‍ ष्‍टेबली वर्किंग्‌ देयर्‌ फौर्‌ मेनी ईयर्‌स्‌...." जयती - "और भविष्य की क्या योजना है?" जय - "आजतक मुझे कोई भी बहुत रुचित नहीं हुई, आपसे मिलकर अब मुझे लग रहा है कि मुझे वो मिल गयी जिसके विना सम्भवतः मैं आजीवन अविवाहित रह जाता...." जयती भी विवाह के लिये सोच रही थी, और इतना अच्छा वर उसे मिल गया, वह भी उसके समीप स्वयम्‌ आया, और तो और कुछ भी धन नही देना पडेगा....एक और....प्यार जो इतना करेगा!! उसे लगा जैसे सौभाग्य स्वयम्‌ चलकर उसके द्वार आया है। वह तीन-चार मिनट्‍ खोयी-खोयी-सी सोचती रही, पुन‍ः सम्भलकर उसकी ओर देखी और बोली- "आइये...." जय उसके संग जाता है। दोनों संग बैठ चाय पी रहे हैं। चूंकि दोनों ही ने प्रथम दृष्‍टि में एक-दूसरे के प्रति आकर्षण अनुभूत किया था, इस कारण दोनों ही को एक-दूसरे का प्रोपोजल्‌ बहुत उत्सुकता से प्रिय लगा था। जय का साहस इससे कुछ और बढा - "मैं लम्बे समय से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था जिसे मैं अपनी जीवनसंगिनी बना सकुं....आपको देख ऐसा लगा कि मेरी प्रतीक्षा की घडियों का अब अन्त हो गया है...." जयती गम्भीर हो भेदनेवाली दृष्‍टि से जय को देखते हुए पूछती है- "क्या अभी तक किसी से प्रेम नहीं हुआ?" जय कुछ बोलने को हो रहा था कि वह पुनः बोल उठी- "वैसे क्या बताया आपने क्या करते हैं? और आगे की क्या योजना है?" जय-"सीनियर्‌ एडीटर्‌....और लेक्चर्‌शिप्‌ के लिये इस यूनिवर्सिटी में भी अप्प्लाइ कर रखा है।" जयती- "यहां! हाउ लकी....अब तो आप हमारे संग ही काम करेंगे...." जयती की आंखों में प्रसन्नता की चमक थी। जय-"इतना स्योर्‌नेस्‌ कैसे?" जयती - "वो आप मुझपर छोड दें, मुझे आपको यहां लाना है....और आप यहां आने की तैयारी करें...." पुनः-"आप अभी फ़्री हैं?" जय-"यह औफिस्‌ टाइम्‌ है, वैसे आप चाहें तो आज मैं फ्री हूं...." जयती-"आइ थिंक् हमलोग इस सण्डे को मिलें तो अच्छा रहेगा...." दोनों एक-दूसरे को अपना मोबाइल्‌ नम्बर्‌ और ईमेल्‌ ऐड्रेस्‌ देते हैं। जयती- "अब आप औफिस्‌ विना लेट्‍ पहुंचे भी मुझसे मिल सकते हैं.... बेष्‍ट्‌ औफ्‌ लक्‌, इण्टर्‌व्यू के लिये...." जय- "यदि यहां मेरा अप्वाएण्ट्‍मेण्ट्‍ हो जाये तो मैं अपने को बहुत लकी समझूंगा...." जयती- "यहां सभी लेक्चरर्‌स्‌ एड्‍हौक्‌ पर काम कर रहे हैं....अधिकतर को एक्स्टेंशन् मिल जाता है, किसी को नहीं भी मिलती, कितने नये भी आते हैं....इसलिये यह बहुत प्रसन्नता की बात तो है नहीं...." जय- "तब भी, भविष्य में परमानेण्ट्‍ हो सकता है....कुछ नहीं तो ईक्स्पीरियेंस्‌‍ तो मिल ही जाता है....और...इन सबसे बढकर हमदोनों की निकटता की है....।"  जयती मुस्कुराती और बाइ कहती है। जय भी बाइ कर चला जाता है।
दृश्य ४ - एक कार्‌ चली जा रही है। उसमें चार यार ठहाके मार रहे हैं। उनमें एक कार् चला रहा है। इनके नाम हैं - चलेजा, पातक, दुःशील, और बोलेजा। चलेजा कार्‌ ड्राइव्‌ कर रहा है। चलेजा- "यार दुःशील, तूने ऐसी ही सडक पर, जहां दोनों ओर शस्य लहरा रहे हैं, एक बार एक १३ - १४ वर्ष की लडकी को उठा रेप्‌ किया था, जिसके कुछ ही समय पश्‍चात्‌ इस रामराज्य लाने की घोषणा करने वाली पार्टी ने तेरी मात्र ४१ वर्ष की अवस्था और लेक्चरर्‌ ग्रेड्‍ को अनदेखा कर तुझ रावण को यौनानन्द ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी का वाइस्‌ चांस्‌लर्‌ नियुक्‍त करवा दिया....उस दिन आरम्भ तूने किया था, हमने तेरे पश्‍चात्‌ भोग लगाया था....पर आज मैं सोच रहा हूं प्लानिंग्‌ और बिगिनिंग्‌ सब मैं करूं....ऐसे-ऐसे ही मैं भी आज कर डालुं....कहीं कोई मुझे भी चुन लेगा....!" बोलेजा- "हूं....पर....कहीं मौत तुझे न चुन ले....हा हा हा..." दुःशील - "पार्टी ने केवल मुझे ही लाभ नहीं पहुंचाया, तुम जैसे कितने ही अपराधियों को भी टिकट्‍ दिया है....स्पष्‍ट घोषणा थी कि सबका शासन देखा बार-बार, इन अपराधियों का भी शासन देखो एक बार...." चलेजा - "तुम तो पा गये ऊंचाई....आज मैं भी ऊंचाई पाने का प्रयास कर ही रहूंगा...." अन्य दोनों ठहाके मारते हैं। कुछ दूर जाने पर एक महिला पगडण्डि्यों से रोड्‍ पर आती दिखती है। चलेजा मन ही मन उससे सम्भोग की कल्पना करता है। पर आनन्द नहीं अनुभूत होता है। मन मारकर अगले आखेट की प्रतीक्षा करने लग जाता है। सामने से एक घोडा-टमटम-गाडी आती दिख रही है। चलेगा कार्‌ धीमा करता है- "अउ......उ...यह नववधू तो बडी सुन्दरी जान पडती है...." वह कार्‌ रोकता है, टमटम को रुकवाता है। ष्‍टाइल्‌ में टमटम के चारों ओर घूमता है- "बहुत आनन्द आयेगा.....हा हा हा....." उस नववधू को उसके कन्धों से नीचे पकड नीचे खींचता है। बुड्‍ढा टमटमवाला - "ऐ बाबू....छोड दो इस बेचारी को....छोड दो......" चलेजा उस बुड्‍ढे को उठा शस्यों में फेंक देता है। दूर-दूर तक रोड्‍ के चारों ओर कोई नहीं दिख रहा है। चलेजा वहीं उस नववधू के वस्त्‍रों को उतार शस्यों में फेंक वहीं उससे सम्भोग करने लगता है। यह देख अन्य तीनों घबडा फटाफट कार्‌ से बाहर आ उस स्त्री को उठा कार्‌ के अन्दर ले जाते हैं। बोलेजा- "यदि कहीं उस बुड्‍ढे ने तुम्हें रिकौग्नाइज्‌ कर लिया तो...?" चलेजा- "उस बुड्‍ढे की आंख इतनी तेज नहीं....वैसे भी आजकल पावर्‌फुल्‌ लोगों के विरुद्‍ध कौन विट्‍नेस्‌ बनता है..." सर्वप्रथम चलेजा कार्‌ के अन्दर उस स्त्री से यौनानन्द लेता है, अन्य तीन बाहर खडे रहते हैं। इसी प्रकार क्रम से अन्य तीनों भी यौनानन्द की आहाहा...तृप्‍ति पाते हैं। चारों से पीडा झेलते-झेलते वह अचेत-सी हो रही है। चारों सावधानी से उसे उठा उसी बुड्‍ढे के तन पर लिटा कार्‌ उडा चल निकलते हैं। चलेजा घूरकर अन्य तीनों को देखते हुए पुनः कहता है- "इस बार यौनानन्द लेना मैंने आरम्भ किया है....देखता हूं ऐट्‍ लीष्‍ट्‍ दुःशील जैसा विशेष मुझे क्या मिलता है...." यूनिवर्सिटी पहुंच दुःशील वाइस्‌ चांस्‌लर्‌ की कुर्सी पर अकडकर बैठ जाता है, अन्य तीनों आराम से सोफा पर पसर जाते हैं। दुःशील - "भइ, ये पौलिटिक्स्‌ भी बडे काम की वस्तु है!....केवल उतर जाओ सफलता पाने को जिस किसी स्तर पर...तब देखो...क्या कुछ नहीं मिल जायेगा....ये धन-सम्पत्‍ति, पद-प्रतिष्‍ठा....अनगिनत यौन सुख... उआ...ह्‌..... क्या मस्ती है ऐसे जीवन में....स्वर्ग और कहां मिले....!!! मेरे संग-संग तुमलोग भी स्वर्गसुख पाये जाओ पाओ....और गुंण तो केवल पौलिटिक्स्‌ के गाये जाओ..." चलेजा- "भई, तुम यह मत भूलो कि मन्दिर बनाने के नाम पर जो देश भर में चन्दे इकट्‍ठे किये गये थे उसका कोई वयवस्थित और विश्‍वसनीय विवरण तो था नहीं.....कई लोग इसमें लखपति बने....मैंने कुछ अधिक ही चतुराई दिखाई और कोई एक करोड से ऊपर का ही चन्दा अपने नाम किया.... हां हां...कुछ जनकल्याण के कार्यों में कुछ धनव्यय करता हूं....हां, तो इस धनराशि से अपनी सोशल्‌ ष्‍टेट्स्‌ बनायी....पार्टी के ऊपरी स्तर के नेताओं से भेंट की....विधानसभा चुनाव लडा...और लहर में जीतकर एकबार विधायक भी रह चुका हूं....और इस वाइस्‌ चांस्‌लर्‌ के पद पर तुम्हें लाने में मेरा भी अच्छा प्रयास रहा है, ध्यान रखना....नहीं तो तुम मात्र लेक्चरर् ग्रेड्‍ के थे...." दुःशील - "अरे अप्रसन्न क्यों होते हो यार...(घण्टी दबाता है) अरे श्याम....चार ठण्डा ले आओ...."चारों ठण्डे की बोतल में कुछ और भी मिक्स्‌ कर ’चीयर्स्‌’ कह अब आनन्दभरा स्वाद ले रहे हैं। तभी श्याम एक पर्ची लेकर आता है कि ये लेक्चरर्‌ मिलने आयी हैं...." दुःशील अनुमति देता है। अन्दर एक युवती प्रवेश करती है जिसे देख चारों ही का मन अनियन्त्रित होने लगता है। कोर्स्‌ डेवलप्मेण्ट्‍ विषय पर वह बात कर चली जाती है पर चारों के हृदय में आग लग जाती है। बोलेजा- "ये नदियां यहां लहरा रही हैं...और हम प्यासे हैं!....." पातक - "ये शासन ने ऐसी-ऐसी नीतियां पाल रखी हैं जिनसे एम्प्लौयर्स्‌ को फ़्री अन्‌लिमिटेड्‍ सेक्सुअल्‌ रिलेशन्स्‌ बनाने में बडी सुविधा मिलती है। पर्मानेण्ट्‍ नियुक्‍ति से कितनी ही लेडीज्‌ अपने शरीर को छूने न दे....पर देखो, कौण्ट्रैक्ट्‍ पर अस्थायी नियुक्‍तियों में जब चाहे जिसे जौब्‌ से निकाल दो,... ऐसे में स्त्रियों को तुम चाहो तो खडे-खडे नंगा कर दे सकते हो, वह स्वयम्‌ ही तुम्हारी बाहों में आ जायेगी...." दुःशील- "अं......." बोलेजा -"हां, ये ठीक कह रहा है पातक....मैं इससे पूर्व जहां प्रोफेसर्‌ था वहां मैंने तो आह्‌....क्या आनन्द पाया...और ऐसी बातें उजागर भी नहीं हुईं....सबलोग कितने सम्मान से मेरा नाम लेते हैं ’प्रोफेसर्‌ बोलेजा’.....!" चलेजा-"ये जो अभी आयी थी, मेरे को मांगता....देता क्या.....?" दुःशील - "यार, शीघ्रता न करो....जानते हो अभी मैंने नया-नया वाइस्‌ चांसलर्‌ का पद सम्भाला है.....इसलिये अभी कोई रिस्क् लेने की पोजीशन्‌ में मैं नहीं हूं.....कुछ वेट्‍ करो...धीरज का फल सदा मीठा होता है....बचपन से ही तुम सभी पढते आये हो...."
दृश्य ५ - इण्टर्‌व्यू हो चुका है, चयन भी घोषित कर दिये गये। जयती ने बडी प्रसन्नता से जय को फोन्‌ कर उसके चुन लिये जाने की सूचना दी। अगले दिन जय वहीं बस्-ष्‍टौप्‌ पर   आ खडा हुआ कि उसके दो-तीन मिनट्‍ पश्‍चात्‌ जयती की कार्‌ वहां आ रुकती है। जयती बाहर निकलती है....दोनों एक-दूसरे को ’हाय्‌’ कह हाथ मिला संग-संग औफिस्‌ की ओर पग बढाते हैं। वहां एक बडे कक्ष में एक टेबल्‌ जय को मिलता है, जयती उसके बगलवाले कक्ष में बैठ कार्य करती है। दृश्यों में दोनों संग-संग चल रहे हैं, यात्रा में हैं, आनन्द-भरा पिक्‌निक्‌ मना रहे हैं, और अब विवाह हो रहा है दोनों का....विजय - "मित्र, इतने कम लोग, और कोई वीडियोग्रैफी इत्यादि भी नहीं?" जय - "अब जयती की ऐसी ही इच्छा थी, मैं क्या कर सकता था...." सुहागरात का दृश्य। यद्‍यपि जय और जयती का विवाह हो चुका है तथापि जयती अभी भी अपने पैतृक आवास में ही रहती तथा वहीं से औफिस्‌ आना-जाना करती है। कारण बतायी कि उसके माता-पिता दोनों ही का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है जिस कारण वह उन्हें छोडने की स्थिति में अभी नहीं है। विवाह में भी जयती की ओर से केवल एक दूर का भाई आया था।
दृश्य ६ - औफिस्‌ के सभाकक्ष में मीटिंग्‌ चल रही है जिसमें सभी लेक्चरर्स्‌ व प्रोफेसर्स्‌ के संग दुःशील वार्ता कर रहा है। जय के सम्बन्ध में दुःशील यह जान बहुत प्रसन्न होता है कि जय एक आध्यात्मिक व्यक्‍ति राघवेन्द्र कश्‍यप के वेब्‌साइट्‍स्‌ से प्रेरणा पा मेडिटेशन्‌ और पूजा आदि में पर्याप्‍त ध्यान दे रहा है, संग-संग महाभारत व उपनिषदों का अध्ययन भी कर रहा है। उसका संस्कृतभाषा का ज्ञान भी बहुत समृद्‍ध हो चला है। दुःशील - "मैं चाहता हूं कि कुछ प्रमुख संस्कारों व पूजा-व्रत आदि की क्रियाविधियों की वीडियोग्रैफी निर्मित की जाये, जिसमें जय जी सहायता करेंगे...." जय - "सर्‌ निःसन्देह....यह तो मेरी रुचि के अनुकूल कार्य होगा..." और भी बातें होती हैं जिसके पश्‍चात्‌ मीटिंग्‌ समाप्‍त हो जाती है।
दृश्य ७ - जय जब प्रातः और सायम्‌ मेडिटेशन्‌ करता है तो कुछ सहकर्मी व दुःशील भी उसके ध्यान का मानसिक प्रत्यक्ष करते हैं....ध्यानावस्था में जय मानसिक प्रत्यक्ष करनेवालों को प्रकाश भरा दिखता है, जय से कोई-कोई मानसिक वार्ता भी करता है। जयती जय की इन सभी बातों को साधारण रूप में लेती है, विचारती कि उसे जय को पति बनाना है गुरु नहीं। जय ऐसे ही एक दिन ध्यान में बैठा है। दुःशील उससे मनसा पूछता है औफिस्‌ के ष्‍टाफ्‌स्‌ के सम्बन्ध में। जय अच्छा ही उत्‍तर देता है। पुनः जय ध्यान में बैठा है। जय से दुःशील फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ के सेक्सुअल्‌ कैरेक्टर्‌ के सम्बन्ध में पूछता है। जय एक क्लेरिकल्‌ ष्‍टाफ्‌ रन्धावा के सम्बन्ध में केवल इतना बता पाता है कि उसका एक अन्य ष्‍टाफ्‌ के संग कुछ विशेष ही चक्कर चल रहा है। जय को स्मरण आया कि औफिस्‌ में उसने उस ष्‍टाफ्‌ को रन्धावा का कन्धा पकड क्या लटक कर चलते देखा था। अब इतनी निकटता कोई स्त्री किसी विशेष को ही दे सकती है....।
दृश्य ८ -अगले दिन जब जय पातक के कक्ष के समीप से जा रहा था तो उसने देखा कि कक्ष पर ताला लटका है। जय को आश्‍चर्य हुआ कि चाहे कोई आये या नहीं, किसी भी कक्ष पर ताला लटका तो उसने कभी नहीं देखा। किसी कार्यवश वीसी दुःशील से मिलने गया तो सुनने को मिला कि वे किसी मीटिंग्‌ में गये हुए हैं। तब वह लौट अपनी सीट्‍ पर बैठ कार्य में व्यस्त हो जाता है। अकस्मात्‌ उसकी दृष्‍टि ऊपर उठती है और वह देखता है कि वीसी दुःशील और रजिष्‍ट्रार्‌ पातक दोनों संग ही वीसी कक्ष की ओर जा रहे हैं। जय को कुछ आश्‍चर्य हुआ। वह उठकर स्थिति का निरीक्षण करने को इधर-उधर टहलता है। जब उसकी दृष्‍टि रजिष्‍ट्रार्‌ पातक के कक्ष पर पडती है तो वह कुछ क्षणों तक देखता ही रह जाता है। क्योंकि वह अब खुला हुआ था। जय शीघ्र रन्धावा को जाता है। रन्धावा मुस्कुराती हुइ अपनी सीट्‍ पर बैठ रही थी। जय ने अन्धेरे में तीर मारा - "मैं कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहा था, कहां थीं आप?" रन्धावा - "जी सर्‌ कुछ काम था मुझे।" अब जय का सन्देह और भी गहरा गया।
दृश्य ९ - जय यथासमय ध्यान कर रहा है। तब वीसी दुःशील उससे कुछ मनोवार्ता करता है। वीसी उससे सुन्दरी लेक्चरर् किरण के सेक्सुअल्‌ कैरेक्टर्‌ के सम्बन्ध में पूछता है। जय ध्यान से उसके सम्बन्ध में विचारता है- "ऐसा अनुमान लगता है कि वह बहुत सेक्सुअल्‌ प्लेजर्‌ पा रही है विना विवाह किये ही...."
दृश्य १० - अगले दिन चारों यार वीसी कक्ष में ह ह ह आनन्द पा रहे हैं.....ठीक है ठीक है....पर मैं चाहता हूं कि वह युवती स्वयम्‌ ही यौनसुख पाने की प्रार्थना करे....वह एक सुन्दरी और कुछ बोल्ड्‍-सी लेक्चरर्‌ लगती है....मैं किसी झंझट में नहीं पडना चाहता....." चलेजा - "नये-नये हो सो भय कर रहे हो...वह स्वयम्‌ ही प्रार्थना करे यह तो सम्भव नहीं..." दुःशील - "सम्भव है.....उसे बुलाता हूं....मैं अपना सेक्सुअली डर्टी माइण्ड्‌ उसके तन-मन में छा दूंगा...तुमलोग भी पीछे से तीव्र कामुक भावनाओं का उसमें संचार करना, मन ही मन सम्भोग करना....यहां के सभी अस्थायी कर्मचारी वैसे ही मेरे समक्ष बलहीन और नम्र खडे रहते हैं....ऐसे में उनको अपने वश में कर लेना तो साधारण-सी बात है....जष्‍ट्‍ हैंगिंग्‌ फ्रूट्‍स्‌...." बोलेजा - "चलो जैसे जो भी हो यार कुछ यहां दिखे तो...." किरण बुलवायी जाती है। किरण - "सर्‌ गुड्‍ मौर्निंग्‌..." वीसी - गुड्‍ मौर्निंग्‌ किरण जी...कैसी हैं....बैठिये...    हां...आपका  कोर्स्‌ डेवलप्‍मेण्ट्‌ कैसा चल रहा है?" किरण - "सर्‌....अः ....आः....." वीसी - "क्या हुआ किरण जी?......" किरण - "सर्‌....डिप्लोमा कोर्स्‌-सिलेबस्‌ के सम्बन्ध में....अह ह....(अंगडायी लेती है...) वीसी कल्पना करता है उसे आगे से आलिंगन में ले उसके ओष्‍ठों का पान करे। बोलेजा - "क्या हुआ बेटे....स्वास्थ्य तो ठीक है न? (आगे बढ उसके मस्तक को छूता है....किरण के तन में सेक्सुअल्‌ तरंगें दौड जाती हैं) ये क्या!!! लगता है जैसे तुम यू विश्‌ टू हैव्‌ सेक्सुअल्‌ इण्टर्कोस्‌ नाउ...इजिट्‍ सो बेटे?....(उसका कन्धा पकड उसे उठाता है....वह आंखें बन्द किये अपना सर बोलजा की छाती पर रखी है.....पातक पीछे से आ कहता है कि वह डबल्‌ डौक्टर्‌ है, अतः वह इसका भलीभांति उपचार करने में समर्थ है, और उसके ब्लाउज्‌ पर हाथ रखता है....किरण और भी अधिक सेक्सुअली एक्साइटेड्‍ हो जाती है....तब वह धीरे-धीरे उसके वस्त्रों को उतारना आरम्भ करता है....किरण विरोध नहीं करती है....जब केवल पैण्टी बच जाती है तो वह उसे अन्यों से कुछ दूर ले जाकर जैसे मीठे आम का चूसकर आनन्द लिया जाता है वैसे उसके ओष्‍ठों को चूसता है और तन का सम्भोग करता है। इसके पश्‍चात् पातक और दुःशील उससे यौनानन्द लेते हैं। पर चलेजा की बारी आने तक में वह थकी सोने लग गयी थी या अचेत-सी होने लग गयी थी।) चलेजा - "ऐसी मरी-मरी से मुझे क्या यौनानन्द मिलेगा? मेरा अब मूड्‍ नहीं है..." वह चुपचाप बैठ जाता है। दुःशील पैण्ट्‍ चढाता बोलता है- "ऐसा प्रयास किया जायेगा.... कि..अगली बार चलेजा की बारी कुछ पूर्व आ जाये....हा ह ह "
दृश्य ११ - जय और जयती दोनों जू में, अन्य उद्‍यानों में, मैदान में प्रेमपूर्वक घूम रहे और गाना गा रहे हैं.....पाता जीवन मेरा जिससे पूर्णता है....    जय- "कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे विना मेरा जीवन कितना अधूरा था....वैसे...जीवन में तो तब भी आनन्द था...पर अब आनन्द जैसे निखर गया है...." जयती - "केवल तुम्हारा ही...या मेरा भी जीवन निखर गया है....मैं अपनी प्रसन्नता कैसे बताऊं...." कार्‌ जयती जय के आवास पर लाकर रोकती है। दोनों अन्दर जाते हैं जहां आजकल जय का पंचवर्षीय भतीजा राहुल भी रह रहा है। राहुल - "चाचा, चलो आज तुमने मन्दिर चलने का प्रौमिस्‌ किया था....." जय- "हूं.......मैडम्‌, चलो अब इसे मन्दिर भी ले ही चलें...इसकी यह छोटी-सी कामना क्यों अधूरी  रहे...." जयती पुनः कार्‌ ष्‍टार्ट्‍ कर बडे मन्दिर की ओर चलती है.... इधर-उधर घूम पश्‍चात्‌ भगवान्‌ की मूर्ति के आगे जय हाथ जोड भजन की कुछ पंक्‌तियां दुहराता है - "प्रभु हमपे कृपा करना...प्रभु हमपे दया करना....वैकुण्ठ तो यही है...हृदय में बसा रहना....प्रभु हमपे कृपा करना....." राहुल मध्य में ही -"और प्रभु हमें मोमो खिलाया करना...संग चौक्‌लेट्‍ भी लाया करना...." जय - "राहुल, मोमो आज नहीं, और चौक्‌लेट्‍ तुम मुझसे ले लेना...." जयती कार्‌ से उनको उनके आवास ले आती है पर मां-पिता के स्वास्थ्य की चिन्ता की बात कह तुरत अपने आवास की ओर कार्‌ दौडाती है। 
दृश्य १२ - दुःशील और पातक दोनों औफिस्‌ के सभी कक्षों में क्रम से जा सभी से मिल रहे हैं। दुःशील(धीमे स्वर में) - "पातक, यहां, ये देखो क्या शान से काम कर रही है, और ये देखो क्या शान से बात कर रही है....क्या ये सब कभी अपने हाथ लगेगी....? आई मीन्‌ अपने....." पातक - "अरे यार घबडाते क्यों हो.... धीरे-धीरे सब सम्भव है....अब समय ऐसा आ गया है कि कोई जौब्‌ छोडना नहीं चाहता है, इसके लिये अपना तन दे देना अब बडी बात नहीं रह गयी है....अरे स्त्रियां तो स्त्रियां तुम पुरुषों से भी ऐसा लाभ ले सकते हो....." दुःशील - "पुरुषों से...! अभी स्त्रियों से मन तृप्‍त हुआ नहीं और तुम.....?" पातक- "बात सुनो.....जबतक अस्थायी नियुक्‍तियां रहेंगी तबतक यौनसम्बन्ध तो यौनसम्बन्ध सबको हमलोगों के पांव के आगे नाक रगडना भी स्वीकार होगा...जहां कुछ स्थायी नियुक्‍तियां हैं वहां भी देखो -- एक अन्य नगर में एक अर्ध शासनिक संस्था में एक कोई उपाध्याय जी एम्प्लौयर्‌ हैं - भारतीय धर्म और संस्कृति का ठेका लेनेवालों के ग्रुप्‌ से....उसके एक जूनियर्‌ एकाउण्टेण्ट्‍ को प्रोमोशन्‌ लेना था....उपाध्याय ने अपने स्वभाव के अनुसार कहा भेज दो अपनी पत्‍नी को...मिल जायेगा...उसने भेज दिया, उसे मिल गया...अब भी दोनों पति-पत्‍नी प्रेम से रह रहे हैं......ये दोनों तथा अन्य भी कर्मचारी इस उपाध्याय जी को तब भी पैर छूकर प्रणाम करते हैं। ये जो ऊपर से समाज जितना अच्छा दिख रहा है अन्दर से उससे कहीं अधिक मलिन हो चुका है....पर ये है कि बातें..., अब अच्छाई केवल कहने के लिये रह गयी है...." दुःशील - "तुम्हारा तात्पर्य कि यहां की सभी स्त्रियां अपनी बांहों में...!!!" पातक ने हां में सर हिलाया... दुःशील की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी....उसका अन्दर ही अन्दर उछलने लगा था। दुःशील अभी से पूर्व तक जहां दो-चार भी फिमेल्‌ ष्‍टाफ्‌ हाथ लग जाये तो अपने को बहुत प्रसन्न मान लेने का मन बनाये था, अब वह पातक से भी अधिक बढकर सोच रहा था। वह कल्पना कर रहा था कि यहां की सभी ३०-४० फिमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ को पके मीठे आम के समान चूसकर उनमें से कुछ की समय-समय पर छंटनी कर कुछ नयी-नयी फीमेल्‌स्‌- चार्मिंग्‌ बौडीज्‌ की नियुक्‍ति करता रहेगा। इस प्रकार ये तीन वर्ष तो उसके लिये स्वर्ग में बीताने के समान होंगे। इस कल्पना से उसके शरीर ने एक सुखद अंगडायी ली। उसने हाथ फैलाया। यह हाथ बगल से जा रही एक लेक्चरर्‌ के सर से टकराया। दुःशील ने झट उसका सर सहलाना आरम्भ किया कि कहीं कोई चोट तो नहीं आयी....उसने अनुभव किया कि उस युवती को उसका सर सहलाना बहुत सुखद लगा। दुःशील सोचा कि क्या ये अपने हाथ लग सकती है !....कुछ औषधि लगाने के बहाने से वह उसे ले अपने कक्ष में जाता है। वहां उसके सर पर एक ओएण्ट्‍मेण्ट्‍ मलता है। वह युवती भामिनी आदर के साथ लगवा ’थैंक्यू सर्‌’ कह फटाफट वहां से चली जाती है। दुःशील उसे अपनी बांहों में लाने की कल्पना ही करता रह जाता है।
दृश्य १३ - जय अपनी सीट्‍ पर है। सामने कम्प्यूटर्‌ है। वह सिलेबस्‌ बनाने के लिये वेब्‌साइट्‍स्‌ से सम्बद्‍ध सामग्रियां सर्च्‌ करने में लगा है। उसके कक्ष में पांच-छः और भी मेल्‌ व फीमेल्‌ लेक्चरर्‌ हैं। जयती आती है और उसके गले में अपनी बांहें डाल देती है। जय उसे प्यार से साथ के चेयर्‌ पर बिठाता है। जयती - "आज मैं एक स्पेशल्‌ डिश्‌ बनाउंगी....चल रही हूं संग तुम्हारे आज....हां...आज ममा पापा दोनों का व्रत है...केवल फ्रूट्‍स्‌ और दूध लेंगे.....और यहां से कुछ और लोग....नीना, स्मृति, अज, सीमेश, ऋतु, और पावनी भी चलेंगे...आज की शाम...शाम नहीं रात...नहीं नहीं शाम ही पर जय की ध्यान साधना के पश्‍चात्‌ होगी पार्टी... सबकुछ और्गेनाइज्‌ करना मेरा काम रहेगा....." जय - "ऐज्‌ यू विश्‌...." जयती अन्य लोगों की ओर प्रश्‍न की दृष्‍टि से देखती है... पावनी - "क्या ऐसा विशेष डिश्‌ है....?" जयती - मैंने पूछा हां या नहीं....डिश्‌ तो मुंह में जाकर ही ज्ञात होगा कि क्या वस्तु है....." सीमेश - "अरे मैडम्‌ आप पार्टी दें और कोई मना कर दे...ऐसा भी हो सकता क्या.....! केवल इतना है कि आपकी कार्‌‍ में सब समा जायें...." जयती - "जितने आ जायें उतना आ जायें, शेष पांच-सात मिनट्‍ पांव से चलकर भी तो आ जा सकते...कितना दूर है यहां से जय का आवास..!" तभी श्याम किरण को ढूंढता आता है कि वीसी सर्‌ उन्हें बुला रहे हैं।
जयती - "वो तो कक्ष संख्या ७ में मिलेगी...." श्याम चला जाता है। जय विचारता है क्या कारण हो सकता है बुलाने का? जयती उठकर अपने कक्ष में चली जाती है...जय अपने काम में लग जाता है....कुछ मिनट्‍ पश्‍चात्‌ उसे पुनः भामिनी का ध्यान आता है....वह अपनी मानसिक शक्‍ति से भामिनी को पर्‌सीव्‌ करने का प्रयास करता है....तभी वीसी जय से मनोवार्ता करता है - "भामिनी को तो जानते होगे...?" जय - "हां...पर अभी तक बात नहीं किया है...." वीसी - "कैसी लगती है तुम्हें.....यदि चाहो तो तुम्हें मिल सकती है..." वीसी का कामुक प्रभाव उसपर पडता है, वह अपना माइण्ड्‍ लैसिवियस्‌ फेल्ट्‍ करता है.... वीसी - "आज चाहो तो शाम लेते जाना अपने संग....इसे कोई आपत्‍ति भी नहीं है...." जय ने अपने माइण्ड्‍ पर कण्ट्रोल्‌ किया -"नो सर्‌...मेरी रुचि नहीं इसमें..." वीसी - "ठीक है....तो मैं ही इसे.....ये तो ओपेन्‌ है...चाहे जो ले ले....है न?" जय- "ऐज्‌ यू लाइक्‌ सर्‌....वैसे, क्या ये प्रथम है?’ वीसी - "नहीं....तृतीय...." "दो और कौन?" "एक रन्धावा और द्वितीय किरण....मैनें तुमसे इनके सम्बन्ध में पूछा भी था..."
दृश्य १४ - वीसी दुःशील अपने कक्ष में भामिनी से- "कुछ निकट आना...(उसकी ललाट सहलाता है...तत्पश्‍चात्‌ उसकी गालों को भी सहलाने लगता है...भामिनी कुछ आपत्‍ति के स्वर में ’सर्‌’ कहती है....) वीसी - "देखो...आजकल जौब् मिल पाना, और वह भी शासनिक क्षेत्र में जौब्‌ मिल पाना कितना कठिन है...तुम तो जानती ही होगी....इसलिये ये जो जौब्‌ मिला है...जो सैलरी मिलती है...उसका चैलेंज्‌ स्वीकार करो...कुछ हमारी नीड्‍ जो है उसे पूरा करो..." भामिनी सर झुकाये शान्त खडी है..... वीसी धीरे से उसका गाल पकडता है...उसकी आंखों पर अपनी अंगुलियां रखता है...तत्‍पश्‍चात्‌ उसके ओष्‍ठों पर अपनी अंगुलियां रखता है....वह शान्त खडी रहती है...वीसी उसे अपनी बांहों में ले लेता है, वह शान्त रहती है.... वीसी - "यहां अभी एक मीटिंग्‌ होनेवाली है, इसलिये चलो आवास चलते हैं....तुम बाहर मेरी कार्‌ के समीप पहुंचो...कोई पूछे तो कहना कोर्स्‌-डेवलप्मेण्ट्‍ के क्रम में कुछ समय के लिये बाहर जा रही हूं..."
दृश्य १५ - वीसी अपने आवास में विस्‍तर पर भामिनी के शरीर का पूरा आनन्द ले रहा है....उठाकर, दबाकर, आदि जैसे मन करे वैसे उससे यौनानन्द ले रहा है...अब वह उसे मुंह खोलने कहता है। वह मुंह खोलती है तो वीसी उसके मुंह में अपना शिश्‍न घुसाता है....कहता है इसे चूसो....पर शिश्‍न को मुंह में लिये भामिनी बहुत ही घृणा फील् करती है...उसे लगता है उसका तन-मन उसका अन्तरात्मा सब मलिन हुआ जा रहा है....वह गिडगिडाती है - "सर्‌, मुंह में मत चोदिये, सर्‌, मुंह में मत चोदिये...." उसके बहुत गिडगिडाने पर वीसी किसी प्रकार अपने कामवेग को रोक उसे भाग निकलने को कहता है। वह वहां से तुरत चली जाती है। वह अपने आवास किसी को इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बताती है। वीसी का तीव्र मानसिक प्रभाव उसके मन को अपने पक्ष में बनाये रखता है। परन्तु....भामिनी के मोबाइल् फोन्‌ से मोबाइल्‌ सिम्‌ कनेक्शन्‌ देनेवाली कम्पनी का एक एग्जीक्यूटिव्‌ इन सभी घटनाओं को सुन रहा और रिकौर्ड्‍ भी कर रहा था। वह उस रिकौर्डिंग्‌ की एक कौपी शिक्षामन्त्रिणी को भेज देता है।
दृश्य १६ - जय अनुभूत करता है कि उसके मोबाइल्‌ फोन्‌ के माध्यम से न केवल मोबाइल्‌ कम्पनी अपितु वीसी व अन्य कुछ ष्‍टाफ्‌ भी सारी गतिविधियों को सुन रहे हैं तथा उसे रिकौर्ड्‍ करने की क्षमता भी रखते हैं। अब वहां से सम्बद्‍ध बहुत-सी बातों की जानकारी मोबाइल्‌ कम्पनी औफिसों और शिक्षामन्त्रिणी आदि को मिल जाया कर रही थी। जय को बहुत सारी बातों की जानकारी मानसिक तरंगों से मिल जाया करती है। वह भामिनी आदि की बात पर खुलकर वीसी के विरुद्‍ध सीमेश से कहता है। वीसी भी उसके विरोधी मन को पर्सीव्‌ करते हुए उसके लाभ के कुछ कार्यों में बाधा पहुंचाता है। किसकी कितनी सैलरी हो यह शासन ने निश्‍चित न कर वीसी की मनमानी पर छोड रखा है, सो वह अधिकतर लेक्चरर्स्‌ की सैलरी अधिक बढाता है, जबकि जय की कम बढाता है जिससे कि जय का प्रभाव कुछ कम करके रखा जा सके। शाम को वह ध्यानावस्था में बैठा है तो वीसी पुनः उससे टेलिपैथी करता है....जय उससे बात नहीं करना चाहता है पर वीसी का मेण्टल्‌ पावर्‌ इतना हाइ है कि उसके वश में सब चला जाता है.....सो जय भी सब भूलकर उससे प्रेम से बातें कर रहा है। वीसी बोलता है कि जय यह न समझे कि वीसी किसी का रेप्‌ कर रहा है... स्त्री जब स्वीकार करती है उससे सम्भोग करना तभी वह उससे यौनानन्द लेता है। वह पुनः अन्य फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ के सम्बन्ध में पूछता है....जय कहता अभी वह सबके सम्बन्ध में बताने की स्थिति में नहीं है। उसका ध्यान चल रहा है और इधर जयती आदि सात व्यक्‍ति पहुंच बर्तन खडखडाने लग जाते हैं....उसका दो कक्षों का फ्लैट्‍ सभी के आनन्द भोजन के लिये पर्याप्‍त है। ध्यान पश्‍चात्‌ वह देखता है सभी मिल जुलकर सबकुछ बना और बातें कर रहे हैं...खाते समय पनीर का स्पेशल्‌ डिश्‌ जय को बहुत टेष्‍टी लगा... जय - "मैडम्‌, ये पनीर का व्यंजन आपने इतना स्वादिष्‍ट कैसे बनाया..?" जयती - "ये पनीर मैंने विना क्रीम्‌ निकाले दूध से अपने आवास पर बनाया, और रेसिपि के अनुसार बनाया तब जाकर इतना टेष्‍टी बना है, नहीं तो मार्केट्‍ के विना क्रीम्‌ वाले पनीर से तो सपने में भी इतना टेष्‍टी पनीर नहीं बन सकता...वे तो अच्छे से फ्राइ भी नहीं हो पाते और टूटने लग जाते हैं।" सबने चार-पांच स्वादिष्‍ट व्यंजनों का आनन्द लिया...तबतक रात के साढे आठ बज रहे थे। जयती अभी कुछ समय रुकना चाहती थी, और बस्‌-ष्‍टैण्ड्‍ भी निकट था इसलिये अन्य सभी ’गुड्‍ नाइट्‍’ कह चले जाते हैं। जयती जय की छाती से लग उसे कामोत्‍तेजित करती है...दोनों यौनानन्द लेने-देने में लग जाते हैं। आधे-एक घण्टे पश्‍चात्‌ जयती भी चली जाती है। जय को इण्टर्‌नेट्‍ का उपयोग आवास में रहते करने की आवश्यकता जान पडती है....औफिस्‌ में किसी ने बताया था कि मोबाइल्‌ कम्पनियां मोबाइल्‌ से कम्प्यूटर्‌ कनेक्ट्‍ कर इण्टर्‌नेट्‍ कनेक्शन्‌ देती हैं...सो दिन में ही वह अपने लैप्‍टौप्‌ से इण्टर्‌नेट्‍ कनेक्ट्‍ करवा लिया था...अब वह नेट्‍-सर्फिंग् आरम्भ करता है....वेब्‌साइट्‍ स्वयम्‌ बनाने की कुछ फाइलें सेव्‌ कर वह सो जाता है। प्रातः तीन बजे उसकी नीन्द टूटती है तो वह पुनः वेब्‍साइट्‍स्‌ सर्फ्‌ करना आरम्भ करता है। कुछ अच्छे गाने डाउन्‌लोड्‍ करने के विचार से वह एक वेब्‌साइट्‍ का ऐड्रेस्‌ एण्टर्‌ करता है तो स्क्रीन्‌ पर बहुत ही छोटे में लिखे कुछ वाक्य उभरते हैं....वह मेन्‌ पेज्‌ ऊपर सरकाता है...पर यह क्या....एक से बढकर एक नंगे कामुक सम्भोग के चित्र दृश्यमान थे...वह एक पौर्न् वेब्‌साइट्‍ खुल गयी थी। हिचकिचाहट में उसने कुछ देखा और पुनः अन्य वेब्‍साइट्‍ पर चला गया। आज रविवार है, इसलिये दिन में वह पुनः इण्टर‌‌नेट्‍ ओपेन्‌ करता है....यद्‍यपि इससे पूर्व भी उसकी जानकारी में पौर्न्‌ सामग्रियां आयी थीं पर उसने तब उनमें अरुचि ली थी....वह उस पौर्न्‌ वेब्साइट्‍ को भी खोलता है.....सम्बद्‍ध लिंक्‌ से और भी पौर्न्‌ वेब्साइट्‍स्‌ खुल जाते हैं....इधर इण्टर्‌नेट्‍ सर्विस्‌ प्रोवाइडर्‌ कम्पनी के कर्मचारी जो जय की वेब्‌-ब्राउजिंग्‌ देख रहे थे उस स्क्रीन् के दृश्यों को वीसी, शिक्षामन्त्रिणी आदि कई लोगों के कम्प्यूटर्‌ पर उपलब्ध करा देते हैं। यद्‍यपि वीसी ने पूर्व से ही देख रखा था पर इससे उसका जय से भय कुछ न्यून हो गया....इससे पूर्व वह जय को बहुत अच्छा व्यक्‍ति समझ यौन अपराध करते उससे कुछ भय अनुभव कर रहा था। जबकि जय के लिये यह जिज्ञासा-शान्ति और अध्ययन का विषय था। जय पर इसका आरम्भ में लैसिवियस्‌ प्रभाव पडा पर पश्‍चात्‌ उसने शनैः शनैः स्वयम्‌ पर नियन्त्रण पा लिया।

दृश्य १७ - राघवेन्द्र कश्यप की आध्यात्मिक वेब्‌-सामग्रियों का अध्ययन कर जय धीरे-धीरे अधिक से अधिक आध्यात्मिक होता चला जा रहा है। वह अपना सोल्‌ ब्राइट्‍ करने के लिये  ब्रह्‌मात्मस्वरूप का ध्यान करता है। वह चिन्तन कर रहा है - उसकी कामना है सबकुछ उचित रूप से हो, कहीं कोई धान्धली न हो....पर अब वस्तुओं के क्रय-विक्रय आदि में आर्थिक भ्रष्‍टता भी होती उसे दिख रही है। मैग्जिन्स्‌, समाचारपत्र, आदि के क्रय के लिये सहस्रों रुपये प्रत्येक मास के लिये आवण्टित हैं। पर क्रय किये जाते कुछ ही संख्या में, और वे भी अधिकतर कुछ ही समय रोक पश्‍चात्‌ विक्रेता को लौटा दिये जाते...जबकि क्रय के नाम पर भारी राशि प्रतिमास निकाली जाती है। कम्प्यूटर्‌ में रैम्‌ आदि कम्पोनेण्ट्‍स्‌ बढाने व लगाने के नाम सबसे हस्ताक्षर लिये गये, और मास-दो मास पश्‍चात्‌ कम्प्यूटर्‌स्‌ बेच दिये गये नये कम्प्यूटर्‌स्‌ से रिप्लेस्‌ करते हुए....वो रैम्‌ आदि क्यों डाले तो...? डाले भी कहां....विना  डाले ही रुपये पा गये....वस्तुओं के क्रय में सस्ती वस्तुयें महंगा रेट्‍ दिखा क्रय की गयीं....फौल्स्ली बार-बार रिपेयरिंग्‌ दर्शायी गयीं...अन्तत‍ः कार्य के अयोग्य बता सस्ता रेट्‍ दिखा अधिक मूल्य पर बेच डाली गयीं...  और भी अन्य उपायों से अवैध धनप्राप्‍ति की जा रही है..... यहां सभी शिक्षा के प्रसार के शुभ उद्‍देश्य से आये हैं या लूट मचाने....! तन लूटो....धन लूटो.....और अब तो मन भी लूटो....वीसी अत्याचारी की भांति व्यवहार कर रहा है.... १० से ५ से भी अधिक समय तक रुकने को कहना - कोई ओवर्‌टाइम्‌ पेमेण्ट्‍ नहीं...अवकाश के दिन भी बुलाना...जब देखो किसी बात पर चिल्लाना....ये क्या औफिस्‌ है!!! ऐसे-ऐसे लोग रामराज्य लाने की बात करते हैं! जबकि व्यवहार में रावणराज्य चला रहे हैं....समय से वह ध्यान लगाने बैठता है...वीसी मन से देख रहा है कि ध्यान में जय प्रकाश-भरा दिख रहा है....वह बात करने के बहाने से जय के ध्यान में बाधा डालता है - "ये नीता के साथ आज तुम्हारा कुछ टेन्शन्‌ हुआ?..." जय - "वैसे बात तो कुछ विशेष थी नहीं...मैग्जिन्‌ कवर्‌ के लिये जो कुछ मन्दिर इत्यादि के चित्र मैंने चुने थे वे उसे मन नहीं भाये....पूरी वर्ल्ड्‍ली वाइज्‌ है वो...." वीसी - "परन्तु उसे तुमसे रेस्पेक्ट्‍फुलि बात करनी चाहिये थी....मैं उसे अब छोडूंगा नहीं....कुछ अच्छा दण्ड मिलना ही चाहिये...." जय पुनः ध्यानमग्न हो गया।

दृश्य १८ - अगले दिन कोई कारण बता लंच के समय ही छुट्‍टी सूचित कर दी गयी। जय शीघ्र निज आवास आ मध्याह्‌न ध्यान में लग गया.....पर इस बार क्लेरिकल्‌ और ऐकेड्मिक्‌ से कोई आठ-दस फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌ तुरत आवास लौटने से रोक ली गयीं....और उसके पश्‍चात्‌ आरम्भ हुआ तनसुख पाने का क्रम...मन से मन न भी मिला तो क्या हुआ...सभी स्त्रियां वीसी कक्ष से बाहर के हौल्‌ में एक पंक्‍ति में बैठा दी गयीं.....नीता को विशेष रूप से अन्दर बुलाया गया....उसे बकरी की भांति आगे दोनों हाथ भूमि पर रख घुटनों पर बैठने कहा गया.... इसके पश्‍चात्‌ वीसी और चलेजा दोनों ने बारी-बारी से अपने शिश्‍नों से उसे ऐसा चोदना आरम्भ किया मानो उसे दण्ड दे रहे हों....फटाफट तीव्र गति से अपने शिश्‍नों को उसकी वेजाइना में घुसा हिट्‍ करने लगे....नीता चिल्लाने लगी...उसकी चिल्लाहट औफिस्‌ में फैली....परन्तु उसे वहां बचानेवाला कोई नहीं था....उसी समय सहसा जय को ऐसा अनुभूत हुआ मानो नीता शरण पाने को चिल्लाती उसके शरीर में घुस गयी कुछ क्षणों के लिये... जय ने अपना मन दौडाया और समझ गया अभी औफिस्‌ में क्या चल रहा होगा... जय (मन में) - ’...ऐसा जान पडता है कि वीसी मेरे बहाने से बारी-बारी से स्त्रियों का आखेट कर रहा है....मुझसे पूछ लेता है, मेरे मन को अनुकूल बना लेता है जिससे मुझसे उसे कोई भय न रहे... अन्य मेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ तो स्वयम्‌ ही करप्‍ट्‍ होंगे ऐसा विचार उनसे उसे क्या भय करना’।.....नीता के पश्‍चात्‌ अन्य फीमेल्स्‌ को बारी-बारी से यौन सुख का प्रसाद दिया जाता है। उनमें एक लेक्चरर्‌ ऐसी अनुभूत हुई जो वीसी से सम्भोग पा बहुत प्रसन्‍न थी कि आह्‌...इतने बडे पोष्‍ट्‍ पर बैठे व्यक्‍ति वीसी सर्‌ से उसे इतनी निकटता पाने का सौभाग्य प्राप्‍त हुआ...अहह मैं तो धन्य हो गयी.....उसने बहुत मन लगा मुखमैथुन भी किया। वस्तुतः, वीसी के अत्याचारी स्वभाव से सभी भयभीत रहते थे। नीता यद्‍यपि अपने पिता द्‍वारा दो बार गर्भवती बना बच्चा जन्मा चुकी है जिसे उसके पिता ने किसी नाले आदि में गर्दन मरोड फेंक डाला था, तथा उसके जीजा ने भी उससे यौन सम्बन्ध बना रखे थे, तथापि वह इस प्रकार की सो पेन्फुल्‌ फाष्‍ट्‍ फकिंग्‌ से फन कुचली सर्पिणी की भांति अन्य सभी फीमेल्‌ लेक्चरर्‌स्‌ और मेल्‌ लेक्चरर्‌स्‌ की पत्‍नी आदि के चुद जाने आदि के रूप में उनका जीवन बिगड जाने की अशुभ कामना कर रही है.....

दृश्य १९ - इन सभी बातों की रिकौर्डिंग्‌ भी मोबाइल् कम्पनियों ने शिक्षामन्त्रिणी को पहुंचा दी....शिक्षा यह सुन बहुत दुःखी हुई.....उसने मुख्यमन्त्री से इस सम्बन्ध में बात की....वह पुनः इस सम्बन्ध में चिन्तन कर रही है....द्‍‍वितीय दिन भी वह इस उधेड-बुन में है कि क्या किया जाये...तभी दो अपरिचित व्यक्‍ति उसके कक्ष में घुसते हैं....द्वार अन्तः से लौक्‌ करते हैं...उसे पकड लैप्टौप्‌ पर असीमित कामुकता या कहो कामान्धता उत्पन्न करनेवाले पौर्न्‌ वीडियोज्‌ दिखाते हैं.... तत्पश्‍चात्‌ उसके मन को कामुक हो गया देख बडे प्यार से उसे यौन आनन्द प्रदान करते हैं। शिक्षा का तन यद्‍यपि कुछ वृद्‍ध हो चला है.....पर अहह....यौन आनन्द है कि कभी वृद्‍ध नहीं होता.... तत्पश्‍चात् वे दोनों चले जाते हैं....उनके चले जाने पर शिक्षा मुख्यमन्त्री को फोन्‌ लगाती है है -"सर्‌...two unidentified persons entered my house and raped me showing porn videos...." मुख्यमन्त्री - "उं उं ये कैसे हुआ...उं...सन्तरी कहां थे उस समय? उं उं......" ऐसा कह वह फोन् रख देता है। शिक्षा को सन्देह होता है कि जिस प्रकार से मुख्यमन्त्री ने प्रतिक्रिया दी उससे लगता है मानो उसे इसकी जानकारी पूर्व से ही थी - ’वैसे जय ने जो पौर्न्‌ वेब्‌साइट्‍स्‌ की फाइल्‍स्‌ सेव्‌ कर रखी थी उसे इण्टर्‌नेट्‍ सर्विस्‌ प्रोवाइडर्‌ कम्पनी ने कौपी कर शिक्षा और मुख्यमन्त्री को भी भेज दिया था....पिता-पुत्री, माता-पुत्र, भाई-बहन, आदि इन सबके सेक्सुअल्‌ रिलेशन्स्‌ के चित्रों से क्या जाने मुख्यमन्त्री का भी माइण्ड्‍ बहुत कामुकता फील्‌ कर रहा हो!! राम जाने...!!!’ इसके पश्‍चात्‌ भी कभी इस लेक्चरर्‌ कभी उस फीमेल् ष्‍टाफ्‌ का तन मसला जाता रहा और सभी सुनते रहे....लाइव्‌ ब्रौड्‍काष्‍ट्‍.....दो-तीन लेक्चरर्‌स्‌ ने फोन्‌ पर शिक्षा आदि पर कम्प्लेन्‌ किया...पर होना क्या है....कुछ नहीं....
दृश्य २० - जय जब ध्यान कर रहा है तब शिक्षा भी मनसा देख रही है.....तभी सम्भवतः वीसी या कोई और शिक्षा से मनोवार्ता करता अनुभूत होता है....जय मनसा सुनता है  शिक्षा उसे हुए बलात्कार के सम्बन्ध में घटना सुना रही है.....जानकर जय को क्रोध आता है....वह मनोवार्ता में शिक्षा को कहता है कि आपके संग जो यह इतनी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी, यह निश्‍चय ही वीसी दुःशील ने मुख्यमन्त्री या किसी और को आपके संग ऐसा करने की प्रेरणा दी होगी जिससे आप जो उसके विरुद्‍ध ऐक्शन् लेने वाली थीं उसे रोका जा सके.... यह विचारकर कि यदि  आप तथा अन्य सभी भी यदि सेक्सुअलि करप्ट्‍ हो जायें तो कौन उसके सेक्सुअल्‌ करप्शन् के विरुद्‌ध ऐक्शन्‌ ले सकेगा....पर अब क्या हो सकता था जब चिडिया चुग गयी खेत....शिक्षा केवल इतना कह सकी कि उन दोनों व्यक्‍तियों ने उसके संग सबकुछ प्लेजरेबल्‌ वे में किया था....जय यह भी सुनता है कि जब शिक्षा वीसी के विरुद्‍ध मन बनायी थी तब प्राइवेट्‍ सेक्टर्‌ के एम्प्लौयर्स्‌ ने शिक्षा का विरोध किया था क्योंकि वे भी अपनी-अपनी कम्पनियों और औफिसेज्‌ में ऐसा ही आनन्द विना भय के पाना चाहते हैं.....पूरे भारत में लोग ऐसी स्थिति जानकर बहुत प्रेरणा और साहस पा रहे हैं। क्योंकि बहुत-से औफिसेज्‌ में अभी भी सेक्सुअल्‌  ह्‌रास्मेण्ट्‍ चल रहा है पर इतना खुलकर नहीं जितना वीसी दुःशील ने कर रखा है...

दृश्य २१ - जय के कम्प्यूटर्‌ में इण्टर्‌नेट्‍ नहीं आ रहा है....वह स्विच्‌ औन्‌ है या नहीं चेक्‌ करने दो-तीन कक्ष पश्‍चात्‌ के कक्ष में जाता है....वहां प्रोफेसर्‌ बोलेजा अपने विषयसमूह के लेक्चरर्‌स्‌ के संग बैठता है....जय यह देख आश्‍चर्यचकित रह जाता है कि जिस लेक्चरर्‌ समता को बोलेजा ने पैण्टी फाड नंगा कर चोदा था वह मन्त्र और स्तुति पाठ कर रही है और बोलेजा हूं हूं ऊपर-नीचे सर समझनेवाली मुद्रा में हिला रहा है.... कोई बाहरी व्यक्‍ति यदि इस दृश्य को देखे तो समझेगा कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति इस यूनिवर्सिटी में जीवित है....पूरे यूनिवर्सिटी का दर्शन कर कहीं किसी को यह भनक भी नहीं लग सकती कि कुछ गडबड यहां चल रहा है....सबकुछ शान्त और अच्छा-अच्छा सा चल रहा लगता है इस यूनिवर्सिटी में....सभी एम्प्लौयिज्‌ वीसी व प्रोफेसर्स्‌ को सम्मान देते हैं...कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि जो इतना रेस्पेक्ट्‍फुलि फीमेल्‌ एम्प्लौयिज् वीसी, पातक, और बोलेजा से बातें कर रहे हैं वे जब चाहे तब इन थ्री फकर्स्‌ द्‍वारा कभी यौनांगों में कभी मुंह में चोद दिये जाते हैं....और चिल्लाना मत...क्योंकि यह यूनिवर्सिटी के डिसिप्लीन्‌ - डेकोरम्‌ और एटिकेट्‌ के विरुद्‍ध होगा...और मुंह खोलनेवाले जौब्‌ से बाहर का मार्ग दिखा दिये गये होते हैं.....। डिसिप्लीन्‌ और डेकोरम्‌ के नाम पर डांट-फटकार, आतंक, और शोषण !!! क्या एम्प्लौयर्स्‌ को भी समान आधार पर डिस्मिस्‌ नहीं किया जा सकता!!! कोर्स्‌ डेवलप्मेण्ट्‍ के नाम पर बाहर भेजे जाते - वहां कोई दुर्घटना घट सकती, कोई षड्‍यन्त्र रचा जा सकता..कौन उत्‍तरदायी होगा??? जय ने स्मरण किया कि समता के मन को वीसी ने पौर्नोग्रैफी और अपनी मानसिक शक्‍ति के द्‍वारा अपने वश में कर सम्भोग के लिये तैयार कर लिया...उसे अपने आवास ले गया...यह समता का प्रथम बार सम्भोग था इसलिये उसके मुंह से आनन्द की सिसकारी निकलने लग गयी...वीसी जब थक गया वह भी तन को कुछ आराम देना चाह रही थी कि उसने पाया दो हाथ और एक शिश्‍न उसे पुनः सम्भोगसुख देने लग गये....वीसी तो थक गया था!!! अरे ये तो रजिष्‍ट्रार् प्रोफेसर्‌ पातक है !!! उसका मन तो केवल वीसी के लिये तैयार हुआ था...पर चलो...अब तुम भी बहती गंगा...नहीं...बहते नाले में डुबकी मार ही लो...वह छूट भी तो नहीं सकती थी उसकी बांहों से....प्रोफेसर्‌ पातक भी जब तृप्‍त हो चला तो समता केवल पैण्टी पहने खडी सोची कि चलो आज तो मेरा कल्याण हो ही गया....अब आवास जाकर आराम हो...पर अभी छुट्‍टी कहां......अब उसके गुरुजी...प्रोफेसर्‌ बोलेजा ने द्‍वार से एण्ट्री मारी है...उनने सर्वप्रथम अपनी शिष्‍या की एकमात्र पैण्टी भी झटके से फाड अलग की...स्साला...ऐसे झटके से...कहीं झटका मीट्‍ शौप्‌ से तो नहीं आया है !! बुचर्‌....!! नहीं...ये तो बाभन है...आह्‌ कितना आनन्द से मुझे नंगा कर मार रहा है..वह भी विना मेरी अनुमति के...औफिस्‌ में मुझे बेटी कह सम्बोधित किया करता है..!.... बोलेजा ने अपने निर्‌देशकत्व के अन्तर्गत आनेवाली सभी स्त्रियों से यौन आनन्द ले रखा था। इधर जय ने इन सबको ढाई-तीन बजे दिन में औफिस्‌ से जाते देख सन्देह किया और मनःशक्‍ति से विभिन्न सहयोग से देख वास्तविकता जान गया....उसने अन्य लोगों को बताया...इधर मोबाइल्‌ कम्पनी ने भी उनके कारनामे लाइव्‌ रिकौर्ड्‍ किये....शिक्षा को भी दिये....पर अब तो कुछ नहीं होनेवाला.....प्रोफेसर्‌ पातक, प्रोफेसर् बोलेजा, डाक्टर् दुःशील, और डाक्टर्‌ चलेजा की भी ऐसी सभी बातें कई प्रमुख राजनीतिक दलों और न्यायाधीशों तक भी पहुंची...पर सब चुप...भाग्य हो तो ऐसा...जैसा वीसी दुःशील का....यह घटना समता के आवास तक भी पहुंच गयी....समता यह जान  किस प्रकार आवास में पर परिवार-जनों को अपना मुंह दिखाये इस चिन्ता में रात के आठ बजे तक आवास में प्रवेश न कर रोड्‍ पर ही भटकती रही....

दृश्य २२ - जय ने पौर्न्‌ वेब्‌ सामग्रियों का अध्ययन कर यह निष्‍कर्ष निकाला कि ये सामग्रियां मानवसमाज के लिये बहुत हानिकारक हैं.....उसने राघवेन्द्र कश्यप से इस सम्बन्ध में बात की...राघवेन्द्र ने बताया कि पौर्न्‌ वेब्‌साइट्‍स्‌ किस प्रकार मानव समाज के लिये हानिकारक है उनने अनुभवजनित निष्‍कर्ष निकाले हैं जो एक कथा-प्लौट्‍ के संग भविष्य में प्रस्तुत करेंगे....पर जय के आग्रह पर उनने इस सम्बन्ध में एक ज्ञानवर्धक वार्तालाप स्वीकार किया.....जय ने जयती को इसके लिये वीसी से अनुमति मांगने को कहा...वीसी नहीं चाहता था पर जयती के प्रेमपूर्ण आग्रह के आगे वह हार गया.....चार दिन पश्‍चात्‌ लंच टाइम्‌ का एक घण्टा मात्र इस वार्तालाप के लिये मन मारकर दिया.....निर्धारित समय पर राघवेन्द्र आये - "पौर्नोग्रैफी के सम्बन्ध में मैंने विस्तृत विवरण अगले कथा-प्लौट्‍ ’वाय्‌रस्‌’ में दिया है.....वहां आप अध्ययन कर सकते हैं....."
एक एम्प्लौयी - "सर्‌, वह कब वेब्‌ पर आयेगा?"
"अभी इस कथा प्लौट्‍ ’छल’ पर अपने कमेण्‍ट्‍स्‌ दें....उसके पश्‍चात् ही मैं विचार करूंगा......"
"तब भी कुछ बतायें इस सम्बन्ध में जिससे कुछ लाभ अभी से मिले..."
"जब प्रकाश होता है तब सबकुछ स्पष्‍ट दिखता है....यह यह है और वह वह है.....पर जब धुन्धला छाने लगता है तब सब स्पष्‍ट नहीं दिखता....स्त्री का तन, पुरुष का तन, पशु का तन इस प्रकार से केवल अनुमान होता है....पोर्नोग्रैफी देख भी आत्मा पर, मन पर, बुद्धि पर, हृदय में अन्धकार छाने लगता है...वह व्यक्‍ति, स्त्री हो या पुरुष, यह नहीं देखता कि कौन उसका क्या सम्बन्धी है और कामुकता के अन्धे वश में आ परस्पर यौन सम्बन्ध बनाने को आतुर हो जाता है....."
"इसका क्या दुष्‍परिणाम होता है?"
"यौन व्यभिचार से मानव अपना सात्‍त्विक अन्तरात्मा खो देता है.....अपनी सात्‍त्विकता खो वह इस समाज का और अपना भी भला करने योग्य नहीं रह जाता है.....न उसमें कोई दिव्य प्रेरणा उठती है न ही उसका मन और हृदय मानवतावश किसी के भले के लिये संवेदनशील या भावुक हो पाता है.....ऐसे लोग मानवसमाज को पशुसमाज के स्तर पर ले आते हैं....जो कि अब आ ही चला है....सब ओर ऐसी ही स्थिति दिख रही है....अत्यधिक कामुक लोग स्वयम्‌ के लिये, निज परिवार के लिये, और इस देश और इस पृथिवी के लिये भी बहुत हानिकारक हो जाते हैं...."
"परन्तु पारिवारिक यौन सम्बन्ध से आपसी लगाव कितना बढ जाता है.....!"
"यदि ऐसा होता तो पति-पत्‍नी में कभी तनाव नहीं होता....उससे भी अधिक महत्‍त्वपूर्ण बात - सन्तान से भावनात्मक सम्बन्ध होता है....और भावनात्मक सम्बन्ध अच्छाइयों के आधार या नींव पर खडा होता है....जो स्त्री कभी इससे कभी उससे चुद रही हो वह अपने बच्चों को भावनात्मक लगाव और प्रेम दे पा सकती है क्या!! भावनात्मक लगाव के लिये हृदय का शुद्‍ध होना आवश्यक है....और हृदय उन्हीं का शुद्‍ध हो सकता है जिनके संग यौन शुचिता एवम्‌ उच्च आदर्श होता है...."
"एक बार पौर्नोग्रैफी देख ली तो क्या अन्तर पडता है..?"
"असीम कामुकता उत्पन्न होती है मन में.....इस अवधि में मनुष्य वह सब कर बैठता जिसके पश्‍चात्‌ अच्छाइयां उसे अपने विरोधी पक्ष में बैठी दिखती हैं.....उसका जीवन अब नीचे लुढकने लगता है.....तब भी, भाग्यवश कुछ समय तक अथवा अधिक समय तक भी वह सांसारिक उन्नति पाता रह जा सकता है....अतः एक बार भी पोर्नोग्रैफी का दर्शन न करो...ऐसे लोगों से भी बचो जो तुम्हें इस ओर ले जा सकते हैं, यदि तुम एक अच्छा मानव बनने की कामना रखते हो...."
"शारीरिक हानि के सम्बन्ध में.....?"
"एक बून्द वीर्य के निर्माण में दस बून्द रुधिर का योगदान होता है...अतः जो लोग वीर्य को विक्षिप्‍त की भांति लुटाते हैं वे इस जन्म में तो आन्तरिक शक्‍ति खोते जाते ही हैं, अगले जन्म में उनका शरीर दुबला और अनाकर्षक होता है...."




-"यदि पौर्नोग्रैफी से सबसे बडी हानि जानी जाये तो वह क्या होगी?"
- "मानव सभ्यता एवम्‌ मानव समाज का अन्त..........केवल मानवेतर प्राणी ही इस पृथिवी पर जीवित शेष होंगे..."





दृश्य २३ - इस व्याख्यान का किसी पर प्रभाव पडा हो या नहीं पर जयती बहुत प्रभावित हुई - "जय, मैं तुम्हें कितना मिस्स्‌ कर रही हूं....विचारती हूं कि अब मैं तुम्हारे संग ही रहूं.... ऐट्‍ लीष्‍ट्‍ आज की रात तो अवश्य रहूंगी....." दोनों रात बहुत प्रेम से बीताते हैं......जयती प्लान्‌ कर रही है कि किस प्रकार वह यहां रहना आरम्भ करे.....कहां क्या कैसे होगा....जयती - "जय, मुझे तुम कितना प्रेम करते हो?" जय - "बहुत अधिक...तुम मेरी दृष्‍टि में एक अच्छी स्त्री हो, इस कारण मेरा प्रेम बहुत गहरा है...." जयती - "पर यदि ऐसा कुछ जानो जहां मेरी भूल सिद्‍ध हो तो?" जय - "यदि तुम्हारा मन शुद्‍ध हो तो सब क्षमा के योग्य है...." जयती ’हूं’ कह किसी सोच में डूब जाती है।

दृश्य २४ - जय की दृष्‍टि जयती के सीट्‍ पर गयी जहां उसने देखा कि वीसी उससे अप्रसन्नता भरे शब्दों में कुछ बात कर रहा है....पश्‍चात्‌ जय के पूछने पर वह बताती है कि वीसी उसे मगन आदि के संग कोर्स्‌ डेव्लप्मेण्ट्‍ के उद्‍देश्य से दिल्ली जाने को कह रहा है.....और उसे न सुनने का अभ्यास नहीं है....जयती उसके पश्‍चात्‌ सबके संग दिल्ली चली जाती है.... जब वह लौट आती है तो जय जब उसे देखता है तो उसे ऐसा लगा जैसे जयती पर अभी यौवन छाया हुआ है......ऐसी क्या बात हुई उसके संग!!! वह ध्यान से जयती की स्थिति को मनसा जानने की चेष्‍टा कर रहा है कि वह कहां क्या बातें कर रही है....कुछ समय पश्‍चात्‌ उसे अनुभूत हुआ कि कोई उससे कह रहा है कि हमदोनों का जो रिलेशन्‌ बना वह जय अपनी मानसिक शक्‍ति से निःसन्देह जान लेगा.....यह कौन बोल रहा था...यह मगन था.....जय को एक क्षण को विश्‍वास नहीं हुआ पर यही सत्य था....उसका मन उससे उचटने लगा...औफिस्‌ में चल रहे आर्थिक भ्रष्‍टता पर भी जय विरुद्‍ध है....जय की बातों का वीसी रूखे शब्दों में उत्‍तर देता है...
दृश्य २५ - पुनः एक दिन वीसी किसी सम्बन्धी के मर जाने के नाम पर औफिस्‌ नहीं आता है....पर आज जयती भी अदृश्य है....लंच तक उसके मन पर ऐसा चामात्कारिक प्रभाव छाया रहा कि वह उसे भूला रहा...पर जैसे ही यह प्रभाव टूटा वह वास्तविकता समझ गया....उसने अगले दिन जयती के बात करने पर भी उससे बात नहीं की और केवल क्रोधपूर्वक उसे देखता रहा....इसके पश्‍चात्‌ दोनों में बहुत अल्प ही बातें हुईं....वीसी जय से अब और भी रुखे से बातें करने लग गया है...इससे जय को असहनीय क्रोध आ रहा है..एक दिन वह पुनः वीसी आदि के करप्शन्‌ के विरुद्‍ध बोल रहा है कि वीसी का बुलावा आता है....वीसी उल्टी-उल्टी बातें कह पुनः उसे जौब् छोड चले जाने को कहता है....जय भी वहां के असहनीय वातावरण से दुःखी है सो विना विलम्ब जाना स्वीकार कर चला जाता है...।

दृश्य २६ - चलेजा वीसी कक्ष में प्रवेश करता है.....वीसी - "ए....तुम विना मेरी अनुमति अन्दर आ गये...." चलेजा - "चलेजा जब चलता है, तो चलता ही जाता है....मार्ग स्थित बाधाओं को मार गिराता है....., जब हम चलते हैं..... पथ हमारे पैरों तले आ बिछने लगता है... जहां हम रुकते हैं.... सभाकक्ष वहीं सजने लगता है....."
"आओ आओ, बैठो बैठो...तुम तो बहुत प्यारी-प्यारी बातें करते हो....."
"अभी तो केवल प्यारी ही बातें सुने हो....मुझे करनी अभी बहुत सारी है...."
"हां हां ... जो बोलो हम तुम्हारे लिये अभी ला दें...."
"लम्बे समय से तुमलोग एक पर एक तर माल का आनन्द ले रहे हो....और मेरा कोई ध्यान नहीं....."
"ऐक्चुअलि इतना शीघ्र प्लान्‌ बनता है कि किसी को बुलाने का प्रश्‍न ही नहीं उठता....जब जिस समय जिसपर मन आ जाये...”
"क्या......"
"देखो क्रोध न करना....मैं तुम्हें कम्पन्सेट्‍ करने को तैयार हूं....अभी कहो तो सभी ३५ - ४० फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ जो यहां हैं सबके सब तुम्हारे लिये हौल्‌ में लाइन्‌ लगा खडी हो जायेंगी....यदि चाहो तो उन्हें न्यूड्‌ भी कर लो...तत्पश्‍चात्‌ सबको बारी-बारी से लेते जाओ.....मार दनादन.....इतनी फैसिलिटी तुम्हें मैं तुम्हें दे सकता हूं....और क्या चाहिये !!!...."
"हम वो शिकारी हैं जो अपने हाथों मारे को खाते हैं....अन्य हाथों मारे को खाते तो कुत्‍ते हैं....."
"हूं...अर्थात्‌..."
मोबाइल्‌ पर - "अन्तः आओ..." पुनः - "अर्थात्‌ यह देखो...."
वीसी - "ये कौन है ?....."
"ये मेरा शिकार है....कोई फुट्‍पाथी नहीं है...मैनेज्‍मेण्ट्‍ कर रखा है.....इसके लिये फटाफट एक अप्वायण्ट्‍मेण्ट्‍ लेटर्‌ बनवाओ - लेक्चर्‌शिप्‌ का...."
"वो तो अभी हो जायेगा...पर इसकी तुलना तुम यहां की ३५ - ४० स्त्रियों से कर रहे हो!!"
"बहुत प्यारी गुडिया है ये....केवल मेरे हाथों मे रहेगी....इसके पिता से मैंने बात कर ली है....उसे तो प्रसन्नता है कि यहां इसे लेक्चर्‌शिप्‌ मिल जायेगा....प्रतिदान में लेते रहो जितना भी यौन आनन्द इससे.....वे लोग तो फ्री में ही पा रहे हैं....मैं तो तब भी इसे कुछ देकर पाउंगा...."
"एक बार मुझे भी चाहिये पर...."
"चलो एक बार तुम भी ले लेना.... क्या आनन्द है गौवर्न्‌मेण्ट्‍ औफिस्‌ का....बाहर तो एक ही बार के लिये हजारों रुपये देने पडते जबकि यहां बार-बार वो भी फ्री औफ्‌ कौष्‍ट्‍...वो भी रौब्‌ के साथ....यौन आनन्द हम लें और पेमेण्ट्‍ गौवर्न्‌मेण्ट्‍ करे.....इयाह्‌...शासन सब जानकर भी न जानने आदि के बहाने से चुप है, अर्थात्‌ वीसी को यह फैसिलिटी दी गयी है...तब हम अवसर क्यों चूकें...ओ देश की एम्‌बीए, एम्‌सीए, इंग्लिस्, साइंस्‌ कुछ भी पढनेवालियों....चाहे नेता चाहे अधिकारी चाहे चाहे किसी की भी हो स्वसा या सालियों...ओ सुडौल शरीर वालियों......सुन्दर-सुन्दर ही, और चलो तुम भी आ जाओ ओ कालियों.... मन पूरा लगाकर पढना....तन अपना बचाकर रखना....क्योंकि हम तुम्हें यहां अपना एम्प्लौयी बनायंगे.....और तुम्हारे तन का भोग लगायेंगे....और चलते-चलते....हम गर्भवती भी तो तुम्हें बनायेंगे.....हमें रौंग्‌ कहने वाली कोई बात न कहना.....अभद्र भाषा में बात करने का आरोप लगायेंगे.....डिस्मिसल्‌ का कलंक भी संग थमायेंगे.....गवर्नर्‌ से तुम न कोई बात करना......उससे अनुमति लेकर ही तो हम यह सब कर जायेंगे...."
"ठीक है...इसे इसकी सीट्‍ दिखा दो....कुछ मिनटों में अप्वायण्ट्‍मेण्ट्‍ लेटर्‌ इसे मिल जायेगा.....करो अब ऐश...."
"जो ऐस्स्‌ होते हैं वे करते हैं ऐश, जो मनुष्य होते हैं वे मनन करते हैं.....हम स्त्रियों का खनन करते हैं, तो बताओ गुडिया हम क्या हुए?...."
"सर्‌...मनन के संग मनुष्‍य, तो खनन के संग खनुष्य...."
"ये खनुष्‍य क्या होता है?...."
"सर्‌...आपने खंडूस सुना है...यह उसी से मिलता-जुलता कुछ होता होगा....!"

दृश्य २७ - जय मध्याह्‌नकालिक ध्यान में लगा है....तभी जयती का फोन्‌ आता है - "जय...तुमहारे लिये एक शुभसूचना है....वीसी सर्‌ ने तुम्हें जौब्‌ पर कम्‌बैक्‌ करने का सुनहरा अवसर दिया है....संग ही जितने दिन तुम अभी नहीं आये उसका भी तुम्हें पेमेण्ट्‌ मिलेगा....तुम केवल आओ और यथापूर्व अपना कार्य करते रहो...किसी प्रकार की समस्या की कोई आशंका नहीं है....." जय -"तुम्हें जो बताना है यहां आकर बताओ..." जयती आती है। जयती उसे मनाती है....जय स्वीकार कर पुनः औफिस्‌ में कर्मरत हो जाता है.....पर आर्थिक और यौन भ्रष्‍टाचार का दुर्व्यसन जो वीसी आदि को लगा वह कहां छूटने वाला....उसी प्रकार जय का मन कहां इन पापियों व अपराधियों के समक्ष झुकने वाला... एक नयी आयी आकर्षक लेक्चरर्‌ लता का प्रोफेसर्‌ पातक ने यह कह बलात्कार आरम्भ किया कि उसे वीसी ने उकसाया है ऐसा करने के लिये......उसने पुलिस्‌ बुलाने की चेतावनी दी तो पातक ने उसे जान मार डालने की धमकी दी...लता ने पुलिस्‌ को फोन्‌ किया पर पुलिस्‌ नहीं आयी...पुलिस्‌ का डण्डा भी केवल निर्दोष और निर्बल लोगों के विरुद्‍ध उठता है...वे किसी विधायक , सांसद, मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्री को किन्हीं भी अपराधों में सन्देह के आधार पर पकड थाने में बन्द कर दे सकते क्या???? तो साधारण जनता के संग ऐसा अन्याय क्यों?  भारत की वैधानिक व्यवस्था पक्षपातपूर्ण  है क्या?  अभी  एक समाचार पढा २८ न. कि पुलिस्‌ पैसा खा किसी को मात्र सन्देह के आधार पर पकड लायी, और जब उसके पक्ष से कुछ महिलायें उसे निर्दोष बता छुडाने आयीं तो उन्हें डण्डे से मारा....क्या यही है भारत की विधि व्यवस्था??? समाचार तो सबके समक्ष है...क्यों नहीं उन पुलिस्‌ वालों को पकड कोर्ट्‍ में प्रस्तुत किया गया?? केवल निर्दोष, निर्बल, और अपने दुश्मनों को सताने के लिये ऐसे-ऐसे विधान बनाये जाते हैं.....यदि तुम्हारा स्वार्थ सिद्‍ध हो रहा हो तो कोई कानून नहीं...सब चलता है....और यदि तुम्हारा स्वार्थ सिद्‍ध नहीं हुआ तो अब सभी बातें अकौर्डिंगलि लौ होंगी....वो भी कडायी से....
पर एक यह भी बात है कि पुलिस वाले भी जान रहे थे कि सरकार लम्बे समय से सब जान रही है पर बहाना बना कोई ऐक्शन्‌ नहीं ले रही...जो बात शासन, न्यायाधीश, सभी जनता की जानकारी में लम्बे समय से विना भय विना बाधा के आराम से चल रही है वह रौंग्‌ कैसे हो सकती है ! अतः इस सम्बन्ध में कोई ऐक्शन्‌ लेने का प्रश्‍न ही कहां उठता है !!!
  दृश्य २८ - .......और पातक ने लता का बडे आनन्द से स्वाद लिया...स्वादिष्‍ट यम्‌ यम्‌ टेष्‍टी....तत्पश्‍चात्‌ वीसी ने उसे समझाया कि देखो यह बात खुली तो तुम्हारी कितनी बदनामी होगी....और वह तथा उसके परिवार वाले बनिया होने के कारण चुप रहे.... पर ऐसी बात तो सभी के संग हुई..... तो स्वभाव से ही भीरु होने.... या स्वयम्‌ भी सेक्सुअलि करप्‍ट्‍ होने के कारण दुम दबा लिये होंगे.... दुःशील का मानसिक प्रभाव व उसका भाग्यशाली समय इतना तीव्र प्रभावशाली था कि किसी भी के परिवार वाले उसके विरुद्‍ध कोई कम्प्लेन्‌ नहीं लाये...वे उससे भय करते भी थे...सच ही, स्त्रियां आरोप केवल निर्दोष और निर्बल लोगों पर ही लगा पाती हैं....बलशाली के विरुद्‍ध बोलने का उनमें साहस कहां~!!.... जय ऐसी-ऐसी घटनाओं को सह न पाया और सीमेश, सीमा, किरण आदि से बातों में बोला कि वीसी आदि सभी में अपना वीर्य डाले जा रहे हैं...और सभी इस बात को समझती हैं कि यदि न मानी तो जौब्‌ में रहने नहीं दिया जायेगा....जितनी हैं वे सब चुद चुकी हैं और जो नयी आ रही हैं वे भी चुद रही हैं....सबके माता-पिता, पति, भाई, पुत्र आदि नपुंसक की भांति चुपचाप अनदेखा कर रहे हैं...जान पडता है ये सभी धनार्जन की ऐसी विवशता स्वीकार कर लिये हैं और/या स्वयम्‌ भी ऐसे ही हैं...  ऐसे में इन सबको भी इस नगर की पब्लिक्‌ पकड इनमें अपना वीर्य डाले कि चल चुद जा नहीं तो इस नगर से निकाल दूंगा.... ये लोग जीवित रह प्रत्येक दिन समाज को हानि पर हानि पहुंचाये जा रहे हैं और कोई भी इनके विरुद्‍ध कार्यवाही को तैयार नहीं....हमें कोई कम्प्लेन्‌ नहीं मिला...हमें इस बात की जानकारी नहीं ऐसा कह सब चुप आनन्द ले रहे हैं....काश उन्हें भी ऐसा एक औफिस्‌ मिल जाये!!! मरकर कोई स्वर्ग जाता या नहीं, जीते-जी स्वर्ग मिले यहां...तुम भी यार जय यहां पांच दस पन्द्रह से यौन आनन्द लो...किसी ने रोका तुम्हें क्या!! ऐसे में देश की जनता को स्वयम्‌ न्याय करना पडेगा....जिस प्रकार यहां प्रत्येक दिन हो रहे दुराचार को सबलोग चुप देख रहे हैं...वैसे ही पब्लिक्‌ इन्हें चोद-चोद मार गिराये....और सब ऐसे ही चुप देखते रहें....जय ने स्मरण किया कि कभी नवरात्र कभी गृहप्रवेश कभी कुछ और पर्व के अवसर पर पुजारी बुला टीका लगा बैठ जाते हैं ये तीनों धर्मात्मा...जब देखो समाचारपत्रों में इनके चित्र और इनकी घोषणायें....स्नेहा आदि कितनी ही अभी तक गर्भवती बना दी गयी हैं जो सोच रही है कि इस गर्भ का वे क्या करें....जय का मन क्रुद्‍ध हुआ.....
 वीसी इन सभी बातों को लाइव्‌ देख सुन रहा था....अगले घण्टे जयती यह सूचना ले आयी कि वीसी सर्‌ ने हम दोनों को कोर्स्‌-डेवलप्मेण्ट्‍ के उद्‍देश्य से मुम्बइ जाने का निर्देश दिया है....कल ही ’तत्काल आरक्षण’ ले तृतीय दिन यहां से प्रस्थान करना है.....

दृश्य २९ - रेल्‌गाडी तीव्र गति से दौडी चली जा रही है....जय और जयती आराम से बैठे प्रसन्नतापूर्वक बातें कर रहे हैं....ट्रेन्‌ रुकती है.....लिखा है - मुम्बइ छत्रपति शिवाजी टर्मिनस्‌....दोनों उतरते हैं....
दृश्य ३० - होटल्‌ में जयती जय की बांहों में... दोनों यौन आनन्द पा रहे हैं... जयती - "आधा घण्टा हो गया...अब चलो कहीं घूमने चलते हैं.....
दृश्य ३१ - समुद्र तट का दृश्य..... जयती एक बोट्‍ चला रही है और जय आराम से उसके बगल में बैठी है। बोट्‍ मध्यम आकार का है.... बोट्‍ अब समुद्र के किनारों से बहुत दूर है.... जयती - "तुम्हें भय नहीं लगता जय इस सागर मध्य?" जय - "जब तुम संग हो तो कोई भय नहीं...मरने का भी नहीं....तुम मुझे इतनी लवेबल्‌ लगती हो कि...तुम्हारी बाहों में ही मेरी मृत्यु हो ऐसी मेरी कामना है...." जयती - "देखो...मरना तो हम सभी को कभी हां कभी है ही...पर मरने से पूर्व मैं मरना नहीं चाहती... जबतक जीयो...आनन्द से, विलास से जीयो.... ऐसा करो... तुम आओ ड्राइविंग्‌ सीट्‍ पर... हां...मैं हूं हां..." जय उठता है....बोट्‍ के किनारे पर वह पांव रख आगे बढ ड्राइविंग्‌ सीट्‍ पर आना ही चाहता है कि वह नीचे गिरता है...पर पानी में गिरने से पूर्व उसके हाथ बोट्‍ के किनारे को पकड लेते हैं....वह चिल्लाया -" जयती बचाओ....मुझे ऊपर खींचो....." जयती - "यू फूल्‌...मैंने ही तो तुम्हें धक्का दिया है...अब मैं क्यों तुम्हें बचाने लगी !!!"
"क्या !!!!!!! तुमने !!!! पर क्यूं?????????????? मैं तुम्हारा पति हूं......तुमने तो अगले जन्म भी मुझे ही पति पाने का व्रत भी रखा था......!!!!!"
"नौन्‍सेन्स्‌ ! तुम मेरे पति नहीं हो.....जानते हो मेरा लीगलि रजिष्‍टर्ड्‍ हस्बैण्ड्‍ कौन है......जानकर कहीं तुम्हारे हाथ न छूट जायें!! पर चलो...मरने से पूर्व तुम्हारी यह जिज्ञासा भी शान्त हो ही जाये....वीसी सुशील ही है मेरा पति....."
"पर विवाह तो तुम्हारा मेरे संग हुआ था!!!!!!"
"हो हो हो......एक पोंगा पण्डित को मैं पकड लायी थी....उसे न तो संस्कृत आता था और न ही विधिवत् विवाह कराना....न विडियोग्रैफी न फोटोग्रैफी....वह पोंगा केवल विभिन्न देवी-देवताओं के नाम और गायत्री आदि मन्त्रों को बोल रहा था.....पर तुम तो थे मेरे प्रेम में डूबे....तुमने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया...जब कोई नियम अनुसरित हुआ ही नही तो कहां तुम्हारा-मेरा विवाह हुआ ?"
"इतना बडा छल मेरे संग !!!!"
"इतना ही नही...तुम्हें डिस्मिस्‌ करने की प्रेरणा भी मैंने ही दी थी....और अब तुम्हें मार डालने का परामर्श भी मैंने ही दिया था....."
"क्यों ? इतनी दुश्मनी क्यों ???"
"तो सुनो.... जो तुम मुझे वर्जिन्‌ समझते थे... वास्तविकता तो यह थी कि इससे पूर्व जहां मैं काम करती थी वहां के एम्प्लौयर्‌ से मेरे यौन सम्बन्ध थे....यही नहीं.... कई अन्य भी धनी व हैण्ड्‍सम्‌ व्यक्‍तियों को मैंने सेक्स्‌ का औफर्‌ दिया था....पर इन सबों ने संग मेरे सम्बन्ध कण्डोम्‌ लगाकर ही बनाया....विना कण्डोम्‌ प्रथम बार वीसी और पातक ने ही संग मेरे यौन सम्बन्ध बनाया....तब वीसी यहां कोई और था और ये दोनों उससे मिलने आये थे....मुझे एक कक्ष में एकाकिनी देख इन दोनों ने द्‍वार अन्तः से लौक्‌ कर मुझे कहा कि सीधे से हमारे संग यौन सम्बन्ध बना, नहीं तो तुम सोच नहीं सकती हम क्या कर सकते हैं तुम्हारा....मैंने उनसे उनका परिचय पूछा.....उन्होंने बताया कि वे बहुत ऊंची राजनीतिक पकड वाले व्यक्‍ति हैं....शीघ्र ही यहां वीसी व रजिष्‍ट्रार्‌ बन आनेवाले हैं.....विश्‍वास न हो तो इस वर्तमान वीसी से तुम्हें बात कराउं इस सम्बन्ध में....मैंने कहा- "औल्‌ राइट्‍.... पर...दो कण्डीशन्‍स्‌ - एक तो मेरे लिये सुखद रूप में करो...‌द्वितीय यह कि कण्डोम्‌ लगाकर करो...." वे दोनों - "हम जौनपुर के शिकारी हैं....विना कौण्डोम्‌ के बलात्‍कारी हैं.....अब चलो, विना ‌‌‍‌विलम्ब किये उतारो अपने वस्त्र ...."
"अच्छा....तुम वीसी यहां के बनने वाले हो यह बात वर्तमान वीसी मुझे बतायें..."
"ये लो.....अरे, इसे बताना मेरे सम्बन्ध में...." "हां, जयती...ये कुछ ही दिनों पश्‍चात्‌ यहां के वीसी बन जायेंगे इसकी पूरी आशा है...."
"पर सर्‌...ये तो ४०-४१ वर्ष के जान पडते हैं....इतनी न्यून आयु में वीसी का पद....?"
"ये जो भारतीय राजनीति है...बडी ही डर्टी है... जो नेता के मन में आये वही विधान होता है....समझी बेटी..."
"सर्‌, आपने मुझे बेटी कहा है...मुझे इन दोनों..." तबतक उन दोनों ने मेरे हाथ से मोबाइल्‌ छीन लिया....और तब उन दोनों ने मुझे बहुत प्यार किया और बहुत फक्‌ किया...पूरा खा गये मुझे....मैं रोने लगी...बोली मुझसे विवाह करो नहीं तो कम्प्लेन्‌ करने से लेकर आत्महत्या तक मैं कर सकती हूं...."
दुःशील को मेरी चार्मिंग्‌ बौडी और ब्यूटी को मन भायी, और वह बोला -"चलो, केप्‍ट्‍ के रूप में रख सकता हूं तुम्हें....’’ पर मैंने विवाह से नीचे कोई बात स्वीकार नहीं की....तब उसने मुझे महत्‍त्व देते हुए कहा- "ठीक है...तुम्हारी स्थिति मैं कुछ और ष्‍ट्रौंग्‌ करता हूं....विवाह होगा, पर कोर्ट्‍-मैरिज्‌...और वह भी न तो तुम किसी को बताओगी न ही मेरे संग रहोगी....मेरी वर्तमान पत्‍नी से जब मुझे छुटकारा मिल जायेगा तब तुम पत्‍नी रूप में मेरे संग रहना आरम्भ कर सकती हो....." मैंने उसकी तगडी बौडी और चार्मिंग्‌ पर्सनालिटि को देखते हुए उसकी बात मान ली....इस प्रकार एक दिन तो उसने मेरा बलात्कार किया, पर मैंने स्वयम्‌ ही अपना तन उसे प्रत्येक दिन के लिये सौंप दिया... और आगे सुनो....मैं तो जीवन की जैसे सारी प्रसन्नता ही भूल गयी थी...केवल वीसी ही मेरी प्रसन्नता का एकमात्र केन्द्रबिन्दु बनकर रह गया था...पर जब तुमने मुझे प्रोपोज्‌ किया तब मुझे अपना यौवन लौटा दिखा...मैंने वीसी से कहा कि वो मेरी तात्कालिक विवशता थी, अब मुझे मेरा पति मिल गया है मुझे जाने दो....पर वीसी कहां यूं मुझे स्वतन्त्र करने लगा..वह बोला -"हूं....ऐसे कैसे??? जब मन आया बलात्‌ घुस आये मेरे जीवन में, और जब मन आया निकल चले....तुम्हें तो अब स्वर्ग मिल जायेगा....पर मेरा क्या होगा....हूं.....एक काम करो....यहां की सभी फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ को बारी-बारी से मेरी बांहों में लाने में मेरी सहायता करो....और जब मुझे तुम्हारी आवश्यकता हो, आ जाओ..." विवाह किस प्रकार से करना है तुम्हारे संग यह प्लान्‌ भी उसी का था जिससे किसी भी क्षण तुम्हें दूध की मक्खी के समान निकाल फेंका जा सके... मैं मान गयी....और कई स्त्रियों को वीसी आदि को भेजने में मैंने और नीना ने उनका मन बनाया...हमदोनों ने उनके क्रुद्‍ध मन को भी कई बार शान्त करने का प्रयास किया....तुम्हारे सीक्रेट्‍ प्लान्‌ भी हमदोनों द्वारा वीसी को लीक्‌ किये जाते रहे, जबकि तुम्हें हमदोनों पर ही सबसे अधिक विश्‍वास था.... जब तुम्हारे पोर्नोग्रैफी के विरुद्‍ध लेक्चर्‌ से प्रभावित हो मैंने तुम्हारे संग ही रहने का निर्णय लिया तो वीसी क्रुद्‍ध हो मुझे मगन के संग  दिल्ली भेजा इसी उद्‍देश्य से कि मगन और मैं यौन सम्बन्ध बनायें...और वही हुआ जो तुमने मनसा जान लिया....यहां से तुम्हारा मन मुझसे उचटने लगा.... अब आगे सुनो... जब तुमने वीसी को मृत्युद्ण्ड के योग्य बताया तो नीना घबडायी और बोली कि यह तो ऐग्रेसिव् हो रहा है जबकि ऐसे रेपिष्‍ट्‍ लोग बहुत ही संकटकारी हो सकते हैं....बस ऐसे ही चुदते रहें और काम करते रहें, कितना अच्छा तो है...पर यह जय इस शान्ति के वातावरण में अशान्ति उत्पन्न करने का प्रयास कर रहा है.... तब भी उसने तुम्हारे विरुद्‍ध इतनी ही कामना की, मेबी फियर्‌फुलि, कि तुम्हें यह जौब्‌ छोड वहां से चले जाना चाहिये....वैसे केवल नीना ही नहीं, प्रायः सभी स्त्रियों ने ऐसा ही मन बना रखा है.... पर उससे भी अधिक चिन्ता मुझे हुई कि आज इनके सेक्सुअल्‌ करप्शन्‌ को जान इन्हें फक्‌ कर-कर मार डालने योग्य बता रहा है.... कल मेरी वास्तविकता जान कि मेरे अबतक आठ-दस या इससे अधिक ही लोगों के संग यौन सम्बन्ध बन चुके हैं यह मुझे भी मार डालने की बात कह सकता है....पर इससे पूर्व कि वह दिन आये, इसका ही अन्त कर देना चाहिये...मैं ऐसा सोच ही रही थी कि प्रोफेसर्‌ बोलेजा ने जय की बलि चढाकर मार डालने का प्रस्ताव रखा....पर वीसी ने इस मुम्बइ और बोट्‍ का प्लान्‌ प्रस्तावित किया...और आज तुम मेरी दया पर कुछ पल और जी लोगे...."
"ओह्‌.....जिस स्त्री को मैंने एक पवित्र भारतीय नारी समझने की भूल की....बहुत अच्छी स्त्री समझ जिसे इतने सम्मान से मैं आजतक ’मैडम्‌ मैडम्‌’ कह सम्बोधित करता रहा वह इतनी बडी चुदक्कडी निकली.....उसने मेरे संग ऐसा-ऐसा अविश्‍वसनीय छल किये....आह्...अब कैसे किसे विश्‍वसनीय समझा जाये....विजय ठीक कहता था कि जो जितनी ही अधिक चार्मिंग् हो उसके सेक्सुअलि करप्ट्‍ हो जाने की उतनी ही अधिक आशंका रहती है..."
"राइट्‍....जय तुम सबके भले की बात सोचते हुए भी रौंग्‌ निकले...पूछो कैसे...मैं बताती हूं....इस औफिस्‌ की सभी स्त्रियां वहां चुद चुकी हैं....और लगभग सबका यही विचार है कि जौब् बना रहे, चुदने में कोई विशेष आपत्‍ति की बात नहीं दिखती, क्योंकि कुछ रिकवेष्‍ट्‍ कर दो कि सर्‌ कुछ प्लेजरेबल्‌ वे में तो वे ऐसा फक्‌ करते हैं कि आह्‌...मन तृप्‍त हो जाता है....और तुम क्या समझते हो कि क्या केवल यहीं ऐसा चल रहा है....!... ये जय तुम हो जिसने ये सारा भेद खोल दिया....नहीं तो दूर-दूर तक किसीको गन्ध भी नहीं मिलती कि यहां ऐसा कुछ चल रहा है.....यहां तक कि पूरे भारत में इस ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी की आदर्श रूप में प्रसिद्‍धि फैल सकती थी....जबकि १०० में ४० अंक तक तो केवल पुस्तक देख लिख देने के मिलते हैं, शेष ६० में भी नम्बर्‌ मनमाना दे दिये जाते हैं....कोई नहीं देखता कि नम्बर्‌ लिखे से बहुत अधिक दे दिये गये हैं...जो अधिक नम्बर्‌ न दे उसे कौपियां चेक्‌ करने को नहीं मिलतीं...इस प्रकार यहां से मिलने वाले सभी प्रमाणपत्र वास्तविक योग्यता के सूचक नहीं....देश में ऐसे पीएच्‌डी डौक्टर्स्‌ की संख्या असंख्य है जिनके नौलेज्‌ को देखो तो वे उन सब्जेक्ट्‍स्‌ के डौक्टर्‌ तो नहीं, पेशेण्ट्‍ ही जान पडते हैं....क्यों??? कुछ तो गडबड है हां.... और यहां !!! रुपय्या फेंको और सर्टिफिकेट्‍ उठा लो....सच पूछो तो ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी कहीं से भी मानवसमाज के लिये लाभदायक न दिखकर केवल हानि ही हानि दे रहा है....पर इसमें हम क्या कर सकते.!!....सेक्सुअल्‌ करप्शन्‌....जिन फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌स्‌ के लिये तुम इतना सहानुभूति कर रहे थे उनमें अधिकतर औल्‌रेडी अपने ब्वाय्‌फ्रेण्ड्‍ आदि से चुद चुकी हैं....कुछ पूर्व से ही प्रौष्‍टिच्यूशन्‌ कर रही हैं तो कुछ ने वहां चुदकर मन बनाया कि जितना धन यहां मास भर काम करने + चुदने पर मिलता है उतना तो वेश्यावृत्‍ति से कुछ ही मिनटों या घण्टों में मिल जायेगा.... भारत के अधिकतर प्राइवेट्‍ औफिसेज्‌ एवम्‌ कई शासनिक कार्यालयों में भी न्यून या अधिक पर ऐसा चल रहा है....पर वहां की बातें सुनने में नहीं आती....क्योंकि वहां कोई जय नहीं है.... सभी लोग सबकुछ जानकर भी चुप इसलिये हैं क्योंकि उन्हें ये सभी बातें आश्‍चर्य की नहीं लगतीं....पौर्नोग्रैफी देख तो वे स्वयम्‌ ही बहुत करप्ट्‍ हो चुके हैं....और इससे भी बडी बात यह है कि जब ऐसी स्थिति पूरे भारत में प्रसृत है तब केवल वीसी आदि के विरुद्‍ध कार्यवाही क्यों?? पकडना है तो सबको पकडो....पर वही है हां...कि प्रथम पत्थर वह मारे जिसने स्वयम्‌ कोई पाप न किया हो....ऐसे में इन बोलेजा, वीसी, पातक, आदि के विरुद्‍ध ऐक्शन्‌ लेना इन्हें स्वयम्‌ के विरुद्‍ध ऐक्शन् लेना प्रतीत होता है.....और भी सुनो....एक नवम्बर्‌ को वीसी ने मुझे अपने आवास बुलाया था...यौन आनन्द के लिये....तुम मुझे मेण्टलि परसीव्‌ न कर सको इसके लिये उस अवधि में तुमपर और नीना पर उसने ऐसा तीव्र मानसिक प्रभाव डाल रखा था कि तुमदोनों लंच तक मुझे भूले रहे....उसके पश्‍चात्‌ सहसा तुम्हें मेरा स्मरण हुआ और मैं कहीं न दिखी तो तुमने नीना से मेरे सम्बन्ध में पूछा... नीना भी ऐसा फील्‌ की जैसे उसके मन को किसी ने बान्ध रखा था...मेरा नाम सुन उसे अपना मन खुलता लगा...तुमने यह बात तब पर्सीव्‌ की और मुझपर सन्देह किया... मनसा तुम्हें यह ज्ञात हुआ कि मैं उस दिन आवास से औफिस्‌ के लिये निकली थी पर औफिस्‌ नहीं पहुंची....मुझे और वीसी दोनों ही को औफिस्‌ में अदृश्य देख तुम सारी वास्तविकता समझ गये और तुम्हारा मन मेरे विरुद्‍ध हो रहा था....पर यह बात तुम्हारे जौब्‌ के लिये बहुत हानिकारक सिद्‍ध हुई....शिक्षामन्त्रिणी भी तब तुम्हें इनिमिकलि मिसण्डर्‌ष्‍टुड्‌ की और एम्प्लौयर्‌स्‌ के पक्ष में तथा मेल्‌ एम्प्लौयिज्‌ के विरुद्‍ध अन्यायपूर्ण विधेयक लाने में महत्‍त्वपूर्ण भूमिका निभायी....और तत्पश्‍चात्‌ तुम जौब्‌ से भी गये....."
"ऐसी-ऐसी बातें सुन मेरा सर चकरा रहा है....प्लीज्‌...मेरा हाथ पकड मुझे ऊपर आने दो.....मैं तुमलोगों से बहुत दूर चला जाउंगा....प्लीज्‌....."
"हूं....तुमने यह निर्णय लेने में बहुत विलम्ब कर दिया....अब तो ऐसा कुछ नहीं हो सकता....तुम्हीं तो कहते थे कि जो चुदक्कड होते हैं वे मानवता, दया, सच्चा लगाव, आदि भावनायें खो चुके होते हैं.....इसलिये...मेरे मन में तुमहारे लिये शून्य प्रतिशत सहानुभूति का भाव है.....और दुश्मनी का भाव हाइ है.....चलो....बहुत बातें हुईं...मैं चलुं अपने आवास की ओर....और तुम भी चलो अपने आवास की ओर - अगले जन्म के...., पर...मेरे मन में ऐसा विचार आ रहा है कि तुम्हारी अन्तिम इच्छा मैं पूरी कर दूं....और मैं जानती हूं कि तुमारी अन्तिम इच्छा होगी ध्यान लगाना ब्रह्‌मात्मस्वरूप पर....चलो...फटाफट ध्यान लगाओ....एक से डेढ मिनट्‍ तक का समय दे रही हूं....बी रेडि...योर्‌ टाइम्‌ ष्‍टार्ट्‍स्‌ नाउ.....वन्‌ सेकण्ड्‍...टू सेकण्ड्‍स्‌......"
जय ने ब्रह्‌मात्मस्वरूप के ध्यान में अपना मन एकाग्र किया.....कुछ समय बीता कि सहसा उसे लगा उसके हाथों पर चोट लगी और वह नीचे पानी में गिरा....जयती ने उसे जल में अन्तः समाते देखा तो स्वयम्‌ को एकाकिनी और मध्य समुद्र में पा उसे भी मृत्यु का भय हुआ....वह सम्भलकर तीव्र गति से बोट्‍ को तट पर लाती है....तट पर आ वह वीसी को फोन्‌ कर सब बताती है...वीसी उसे कुछ समय वहां वेट्‍ करने को कहता है....कुछ मिनटों पश्‍चात्‌ पुलिस्‌ आती है....जयती उसे बताती है कि जय मध्य समुद्र में पैर फिसलने से सागर में डूब गया....पुलिस्‌ कुछ औपचारिकता कर उसे वहां से जाने देती है......

दृश्य ३२ - सामान्य रूप से यौनानन्द ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी का कार्य चल रहा है....एक बलिष्‍ठ तन की सुन्दरी औफिस्‌ में प्रवेश कर वीसी कक्ष के बाहर पहुंच श्याम को अपना रिज्यूमे देती है....श्याम उसे ले अन्तः जाता है....वीसी उसे अन्तः आने को कहता है.....वह अन्तः प्रविष्‍ट हो सिर तान रानियों जैसे स्वर में कहती है - ’गुड्‍ मौर्निंग्‌’..... वीसी उसे देखता ही रह गया -’इतनी सुन्दरी और बलिष्‍ठ शरीर की...अउउ.....काश ये मुझे एक घण्टे के लिये भी मिल जाये, भले ही इसके पश्‍चात्‌ मुझे जीवन भर कोई और न मिले!!!....’ "हं हं हं...आइये आइये ....प्लीज्‌ बी सीटेड्‌"
"इस यूनिवर्सिटी का बहुत नाम सुना था, सो मैंने विचारा यहां मेरा जौब्‌ केयरिअर्‌ ब्राइट्‍ हो सकता है...."
"इसकी आप चिन्ता न करें....समझिये आपको मैंने यहां पर्मानेण्टलि नियुक्‍त कर लिया...."
"ओ थैंक्यू सर्‌....आइ काण्ट्‍ से हाउ ग्लैड्‍ आइ ऐम्‌...."
वीसी को ऐसी अनुभूति हुई कि वह उसके प्रति तीव्र कामुक आकर्षण पा रहा है....उसका मन हुआ कि वह अभी तुरत उसे यौन आनन्द के लिये औफर्‌ करे, पर उसके बोल्ड्‍ ऐपियेरेन्स्‌ और बोल्ड्‍ माइण्ड्‌ को देखते हुए ऐसा कुछ कहने का साहस न कर सका....अः ..... दो-चार मिनट्‍ पश्‍चात्‌ अपनी कामुक स्थिति असहनीय होती देख उसने अन्य दोनों को इण्टर्‌कौम्‌ से बुला लिया....और आरम्भ की भांति उस युवती व्याघ्री पर अपना तीनों ने तीव्र कामुक प्रभाव डालना आरम्भ किया.....व्याघ्री ने अपना सर पकड लिया...वीसी को अब जाकर अवसर मिला - "क्या सर में पीडा हो रही है? ओएण्ट्‍मेण्ट्‍ लगा दूं?..." व्याघ्री सर हिलाती है तो वीसी ओएण्ट्‍मेण्ट्‍ निकाल उसके ललाट पर लगाता है....व्याघ्री आराम की सांस ले रही है....वीसी की अंगुलियां बहकने लगती हैं....वे ललाट से नीचे की ओर बढने लगीं...व्याघ्री ने अनुकूल प्रतिक्रिया दी...वीसी का साहस बढा....उसने अन्य दोनों को सेक्सुअल्‌ इफ्फेक्ट्‍स्‌ और इण्टेन्स्‌ करने को कहा.....व्याघ्री की तो सिसकारी निकलने लग गयी....विना विलम्ब किये वीसी ने अपनी अंगुलियां उसके गालों....गर्दन...और ये लो चौका...उसके वक्षःस्थल पर रख दिये...व्याघ्री अनुकूल भाव से सेक्सुअलि एक्साइटेड्‍ हो जाती है....वीसी ने विना विलम्ब किये अपनी अंगुलियों से मारा छक्का...उसे उठा आलिंगन में ले उसके ओष्‍ठों का पान करने लगा.....दो-चार मिनट्‍ तो व्याघ्री भी सिसकारियां लेती रही....पर तुरत तब उसने निज शरीर को वीसी से अलग किया - "सर्‌....ये आप क्या कर रहे हैं!!!"
"ओः...न जाने कैसे ये.....(दो मिनट्‍ शान्ति छायी रहती है..)....वैसे....यहां की सभी फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌ मुझे बहुत लाइक्‌ करती हैं....सभी ने मेरे संग यौन सम्बन्ध बनाये हैं.....कुछ ने तो स्वयम्‌ ही...."
"सच में.!!!"
"हां....शत प्रतिशत सत्य....."
"तो क्या मुझे भी बनाना पडेगा...?"
"हां..और क्या....! ये भी तो देखिये कि इससे कितनी सारी सुविधायें आपको मिलेंगी....आप तो स्वयम्‌ को ही वीसी समझ लें ऐसी फैसिलिटी आपको मैं दूंगा....जब चाहे आयें..जब चाहे जायें....विना आये भी उपस्थिति बना लें....औफिस्‌ में भी आराम से बातें करें...इण्टर्‌नेट्‍ सर्फ् करें....  सैलरी आपको सबसे अधिक दूंगा...पर अभी बीस हजार से आरम्भ करता हूं...जब चाहे ड्यूटि लीव्‌ ले लें....और टूर्‌ पर निकल जायें......आनन्द ही आनन्द, विलास ही विलास पूरे मास....."
"पर मैं यह कैसे जानुं कि यहां की सभी फीमेल्‌ ष्‍टाफ्‌ ने आपके संग यौन सम्बन्ध बनाये हैं.....?"
"मेरा तो सबके संग है ही.....इन दोनों का भी कई के संग है...और ये चाहें तो मैं अभी सबको एक लाइन में खडा करने को कह दूं...ये सभी बारी-बारी से सबको यौन प्रसाद देते जायेंगे....सभी ने यह मान लिया है कि बस जौब्‌ बना रहे इसके लिये चाहे एक से चुदना पडे या दस से...क्या अन्तर पडता है....एड्‍स्‌ की भी कोई चिन्ता नहीं....जब सर ऊखल में डाल दिया...तो अब मूसल से क्या डरना....! तब भी आपके सन्तोष के लिये....(मोबाइल्‌ से) अरे यमुना...आना यहां....(यमुना आती है).. चलो, तैयार हो जाओ...यहीं पर....हां हां उतारो....(वस्त्र उतारती है) ....केवल पैण्टी में अब यह है....कहो तो ये भी उतरवा दूं.....भई बोलेजा, पातक, आपलोग प्रसाद प्रदान करें...."
वह उसको चुदती देख रही है - "पर केवल यही एक भी तो हो सकती है...जिसे मैं कहूं उसे...तब मैं जानुं....."
"हां...यह भी ठीक है....बोलेजा, इन्हें संग ले घूम जा....सारा औफिस्..."
"नहीं...मैं एकाकिनी औफिस्‌ का भ्रमण करूंगी...."
"ऐज्‌ यू विश्‌....पर मैं केवल आधे घण्टे का समय देता हूं.....आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूं......."
वीसी बोलेजा को कहता है - "इसपर दृष्‍टि रखो....भागने न पाये....."
व्याघ्री इस कक्ष से उस कक्ष में देखती चली जा रही है....कोई उसे बहुत मन नहीं भायी....एक स्थान पर उसे समक्ष से आती जयती दिखती है....व्याघ्री - "एक्स्क्यूज्‌ मी...आपको वीसी सर्‌ बुला रहे हैं..." जयती उसके संग चली जाती है....वीसी जयती को देख - "हो हो हो...मानना पडेगा व्याघ्री जी आपकी रुचि को.....बेष्‍ट्‍ आइटम् है ये यहां पर....जयती चलो यहीं आरम्भ हो जाओ संग मेरे....क्योंकि तभी यह सुन्दरी मानेगी...."
"केवल आपके ही संग नहीं....सभी तीनों के संग....क्योंकि मुझे भी कुछ ऐसा ही करने को आपने कहा है...."
जयती - "नौन्‌सेन्स्‌! ये क्या बोल रही है????"
वीसी पातक को द्‍वार अन्तः से लौक्‌ करने को कहता है....पुनः - "जयती....सत्‍तर चूहे खाकर अब क्या गंगा नहाने का विचार है!!! यहां सब के सब चार्मिंग्‌ बौडीज्‌ हैं जो तुम्हें सबसे प्रिय हैं....फटाफट उतारो...." वह चुपचाप खडी है तो वीसी आगे बढकर स्वयम्‌ ही उसकी साडी आदि सारे वस्त्र एक-एक कर उतार देता है....और आरम्भ कर देता है पौर्न्‌ वीडियोज्‌ जैसी फकिंग्‌....
व्याघ्री - "रुको....समझ गयी...अभी मैं...मेरे पश्‍चात्‌ संग इसके कण्टिन्यू करना.....तबतक तुम ऐसे ही खडी रहो....." अब वीसी और व्याघ्री दोनों सम्भोगरत हो जाते हैं......वीसी उसे छोडने का नाम ही नहीं ले रहा...जान पडता है अपना सारा वीर्य उसमें डाल देगा....पर आधे घण्टे पश्‍चात्‌ छुट्‍टी मिलती है....वह उठती है और वस्त्र धारण कर लेती है....सहसा उसे कुछ ध्यान आता है..वह पुनः वीसी का शिश्‍न पकड चूसना आरम्भ करती है.....दो-तीन मिनट्‍ कर छोडती है, और जयती को सम्भोग के लिये संकेत करती है....अब विना मन भी वीसी जयती संग दस मिनट्‍ तक सम्भोग करता है......इसके पश्‍चात्‌ कोई दस-दस मिनट्‍ तक व्याघ्री अन्य तीनों के संग भी सम्भोग करती है.....जयती को भी इसी प्रकार अन्य दोनों संग सम्भोग करना पडता है....
वीसी के समक्ष बैठी व्याघ्री का मुखडा सहसा अतिक्रुद्‍ध चण्डी जैसा होने लग जाता है....वह उठती है और ष्‍टाइल्‌ में कडकती बोली - "चल...रुपये निकाल....." वीसी - "रुपये!! कैसे रुपये????"
"हरामजादे....ये बौडी देख रहा है....मार्केट्‌ में लाख से न्यून में नहीं मिलेगी.....हाउएवर्‌....निकाल बीस हजार जो तूने ही कहा....हां...और तुम दोनों भी फटाफट बीस-बीस निकालो...नहीं तो अभी पुलिस्‌ बुलाती हूं...कि इण्टर्‌व्यू देने आयी थी और इन तीनों ने मेरा बलात्‍कार कर दिया.....जानता है मैं कौन हूं??...." वीसी के तब भी चुप बैठे रहने पर वह एक बलशाली थप्पड उसे लगाती है गाल पर....यह देख बोलेजा कहता है -"दे दे यार और इससे छुट्‍टी पाओ....." वीसी तब भी भन्नाये सर संग बैठा है.....व्याघ्री स्वयम्‌ ही उसका पौकेट्‍ टटोल जितने भी रुपये मिले निकाल लेती है....वह शेष दोनों की ओर बढती है.....पर वे दोनों स्वयम्‌ ही घबडाये अपने पौकेट्‍ झाड सारे रुपये उसे थमा देते हैं.....व्याघ्री - "चलो....रुपये जितने भी मिलें...अपना मुख्य उद्‍देश्य तो पूर्ण हुआ....." ऐसा कह सारे रुपये विना गिने अपने हैण्ड्‍बैग्‌ में डाल वहां से विना किसी बाधा के निकल चली जाती है....
बोलेजा - "अन्य सभी को हमने डिसिप्लीन्‌ और एटिकेट्‍ के नाम पर बकरी जैसा मिमियाती रखा....एक ने भी ऐसा साहस यदि दिखाया होता तो ये सभी ३५-४० अभी तक नहीं चुद गयी होतीं....एक को भी चोदना कठिन हो जाता...और डिस्मिस्स्‌ होने का भय संग ही आ जाता..."
वीसी - "मुझे चिन्ता हो रही इस बात की...कि उसने यह क्यों कहा, कि उसका मुख्य उद्‍देश्य तो पूर्ण हुआ...? क्या था उसका मुख्य उद्‍देश्य?"
शाम होते-होते वीसी को अपना शरीर जलता-सा लगा.....उसने डौक्टर्‌ को बुलवाया....अभी डौक्‍टर्‌ अपने काम में लगा था कि जयती ने भी फोन्‌ कर ऐसी ही पीडा बतायी....वीसी उसे भी बुला लेता है....दोनों की बिगडती अवस्था को देख डौक्टर्‌ उन्हें बडा हौस्पीटल्‌ रेफर्‌ करता है....वहां दोनों को ऐड्मिट्‍ किया जाता है....दो-तीन पश्‍चात्‌ दोनों को आश्‍चर्यजनक रूप से हाइलि एड्स्‌ इन्फेक्टेड्‍ घोषित कर दिया जाता है...डौक्टर्स्‌ यह सोच आश्‍चर्य करते हैं कि विना लक्षण उभरे सहसा कैसे हो गया!!!!! उधर बोलेजा और पातक भी घबडाये वहां पहुंचे....उनका चेकप्‌ कर उन्हें भी एड्स्‌ इन्फेक्टेड्‍ घोषित कर दिया गया.....पर वीसी और जयती पर एड्‍स्‌ का प्रभाव कुछ अधिक ही पडा था...इतना एक मास के अन्तर्गत ही वीसी के प्यारे शरीर ने उसका संग छोड दिया....उसका शव बेड्‍ पर पडा है.....एक व्यक्‍ति उसके शव के समीप आता है....उसका मुख शव की ओर है, पीछे से पीठ दिख रही है....वह वहां से पुनः जयती के बेड्‍ के सम्बन्ध में एक डौक्टर् से पूछता है....डौक्टर्‌ उसे ले जाता है जयती के समीप....जयती आंखें बन्द किये लेटी है....डौक्टर्‌ बताता है कि यह बहुत ही दुर्बल हो चुकी है.....कभी भी इसके प्राण निकल जा सकते हैं.....डौक्टर्‌ के पुकारने पर जयती - "कौन है?" मरी-मरी स्थिति में बोली....वह व्यक्‍ति उसके मुखडे के ठीक समक्ष खडा है.....जयती उसे अभिजानने का प्रयास करती है पर अभिज्ञान न कर पाती है....वह व्यक्‍ति कुछ विशेष स्वर में बोला- "कुड्‍ नौट्‍ यू आइडेण्टिफाइ मी..?......" जयती तब आंखें फाडकर सर उठा उसे देखती है...और ’नहीं..................’ चिल्लाती है, विस्तर पर उसका सर गिर जाता है....डौक्टर्‌ उसका सर सम्भालता है....पर यह क्या!!! - "शी इज्‌ नो मोर्‌..." वह व्यक्‍ति तब वहां से हा हा हा करता चला जाता है..........वह जय के आवास पहुंचा और लौक्‌ खोल अन्तः प्रविष्‍ट हो गया......लाइट्‍ औन्‌ करता है.....उसका मुखडा समक्ष उभर आता है - जय है यह.....जय विजय को फोन्‌ करता है....विजय उसे जीवित जान बहुत प्रसन्न हो दौडा चला आता है उससे मिलने.....

दृश्य  ३३- विजय ने कौल्‌बेल्‌ बजायी....जय ने अन्तः से ऊंचे स्वर में बोला -"आ जाओ, खुला है...." विजय अन्तः प्रवेश कर जय को गले से लगा लेता है.....विजय - "जय....मुझे विश्‍वास नहीं हो रहा कि मैं तुम्हें सच में जीवित व यथापूर्व देख रहा हूं.!!!!" दोनों बैठते हैं। जय ने अभी-अभी फ्रूट्‍जूस्‌ बनाया था, दोनों पी रहे हैं....जय - "तुम्हें बहुत कुछ जानने की उत्सुकता होगी..." विजय - "तीव्र उत्सुकता बोलो...." जय उसे सारी घटना सुनाता है.... दृश्य फ्लैश्‌ बैक्‌ में - व्याघ्री क्लास्‌ से लौट बस्‌ पकडने चली जा रही है....उसके बैग्‌ में एम्‌.ए. की कुछ पुस्तकें हैं.....तन उसका भरा हुआ और आकृति सुन्दर है.....तभी एक अठारह-बीस वर्ष का युवक उसके निकट आ उसे कहता है -"मैडम्‌ सुनना...."
"क्या है?"
"जौब्‌ चाहिये..?...हमारी कम्पनी को चाहिये आप जैसी पढी-लिखी और आधुनिक लेडीज्‌....सैलरी लाखों रुपये की..."
"हूं....क्या काम है? कहां है ये कम्पनी?...."
"ये लीजिये बात करिये हमारे सर्‌ से....."
"हलो सर्‌...गुड्‍ आफ्‌टर्‌ नून्‌....."
"गुड्‍ आफ्‌टर्‌ नून्‌....वुड्‍ यू इण्ट्रोड्‍यूस्‌ योर्‌सेल्फ्‌...."
समा ने इंग्लिश्‌ में अपना परिचय दिया।
"ओके...नाउ कैन्‌ यू कम्‌ फौर्‌ ऐन् इण्टर्‌व्यू.?"
"व्हेन्‌ सर्‌....?"
"राइट्‌ नाउ...."
व्याघ्री उसके संग चली जाती है.... एक रेष्‍टोरेण्ट्‍ में बैठा बौस्‌ उसे देखकर प्रसन्न होता है - "गुड्‍.....फ्रेशर्‌स्‌ के लिये तो पांच हजार की सैलरी भी बहुत होती है....और दस हजार मिल जाये तो क्या कहना... ..............पर...मैंने आपके लिये रखा है - दो लाख रुपये..."
 ’दो लाख रुपये....!!!......’ समा के आश्‍चर्य की सीमा नहीं थी.....
"और वह भी कोई मास भर यहां १० से ६ काम करने के नहीं.....केवल दो घण्टे के......वह भी एक ही बार...."
"सर्‌ यू आर्‌ जोकिंग्‌...."
"रिलैक्स्‌....प्रथम यह बताओ कि तुम यह काम करने को तैयार हो नहीं....?"
"सर्‌ श्योर्‌....१०० पर्सेण्ट्‍...."
"ये जौब्‌ बहुत ही चैलेंज्‌ भरा है....आर्‌ यू रेडी टू फेस्‌ अनि टाइप्‌ औफ्‌ प्रौब्लेम्‌?"
"सर्‌ आप काम बताइये...मैं अभी से तैयार हूं....."
"तुम्हें दो घण्टे के लिये हमारे कष्‍टमर्‌ को सेक्सुअल्‌ सैटिस्फैक्शन्‌ देना होगा...."
वह चुप सुन रही थी....बौस्‌ को लगा उसका मन कुछ हट रहा था.....
"क्या तुमने पहले कभी सेक्स्‌ नहीं किया है....?"
"किया है...पर कौण्डोम्‌ के संग...अपने ब्वाय्फ्रेण्ड् के संग...."
"कोई बात नहीं....तुम्हें इसमें बहुत आनन्द आयेगा...प्लस्‌ अभी एक लाख एड्‍वांस्‌....."
"ठीक है...कहां है एड्‍वांस्‌?"
बौस्‌ उसे एक पैकेट्‍ देता है जिसमें गिनने पर पूरे एक लाख रुपये थे....उसे तुरत ही उस लडके के संग जाने को कहता है...पर वह कहती है कि प्रथम वह इस रुपये को बैंक्‌ में संग्रह करेगी, तत्पश्‍चात्‌ ही कही जायेगी....बौस्‌ बल दे कहता है कि रुपये संग ले जाओ....काम हो जानेपर आवास लिये चले जाना...पर वह आग्रह पर बनी रहती है कि बैंक्‌ में संग्रह कर ही कहीं जायेगी...नहीं मानता देख बौस्‌ कुछ क्रोध से अनुमति दे देता है....
बैंक्‌ में धनराशि संग्रह कर लेने पर वह लडका उसे ले एक मध्यमवर्गीय होटल्‌ में आता है....वहां एक कक्ष में एक विदेशी उसे नंगा कर सम्भोगता है...एक घण्टे के पश्‍चात्‌ तीन और विदेशी आ जाते हैं....व्याघ्री कहती है उसकी बात केवल एक के लिये हुई थी...पर वे कहते हैं कि उसने बौस्‌ का रूल्‌ तोडा है धनराशि पूर्व ही बैंक् में संग्रह कर....अतः पेनाल्टी में तीन व्यक्‍तियों से प्लेजरेबल्‌ सेक्सुअल्‌ हिट्‍स्‌ और लो....वे तीनों एक संग ही उसे कोई मुंह में कोई पीछे कोई आगे....जैसा पौर्न्‌ वीडियोज्‌ में देखा गया....उसके बहुत अनुरोध करने पर भी डेढ-दो घण्टे के पश्‍चात् ही छोडा....उसे बेड्‍ पर छोड वे चले गये....वहां कोई और नहीं था....वह समझ गयी उसे शेष एक लाख रुपये नहीं मिलेंगे.... दस-पन्द्रह मिनट्‍ पश्‍चात्‌ जब वह उठी और अपना मुखडा दर्पण में देखा तो पाया कि वह बहुत ही कुरूप लग रहा था.....उसे अनुमान हो गया कि उसके परिवार वाले उसे देखते ही सारी स्थिति समझ जायेंगे....अतः वह बाहर निकली, कुछ रुपये एटीएम्‌ से निकाले, और बस्‌ पकड किसी मेट्रो सिटी को चली गयी.....मोबाइल्‌ पर उसने अपनी मां को बताया कि वह सहसा एक इण्टर्‌व्यू देने दिल्ली चली गयी है.....दिल्ली में एक होटल्‌ में दो दिन रही....इस मध्य उसने कुछ शौपिंग्‌ की और एक फिल्म्‌ देखने गयी....वहां मध्यान्तर में कुछ विज्ञापन आ रहे थे....एक विज्ञापन में - ’असुरक्षित यौन सम्बन्ध से बचें....कौण्डोम्‌ अपनायें...अपरिचितों से यौन सम्बन्ध न बनायें....यदि उन्हें एड्‍स्‌ हो तो आपको भी एड्‍स्‌ हो जा सकता है.....तुरत निकट के स्वास्थ्य केन्द्र में अपना चेकप्‌ करायें...’ वह तुरत वहां से निकल जानकारी ले निकट के केन्द्र में जाती है....वहां उसके एड्‍स्‌-इन्‌फेक्टेड्‌ होने की पुष्‍टि होती है.....उसकी वहां भर्ती की जाती है तथा अन्य किसीके संग यौन सम्बन्ध बनाने से मना किया जाता है कि ऐसे में उस व्यक्‍ति को भी एड्‍स् हो जायेगा....कुछ दिन बीते थे कि एक दिन जय वहां आया....एड्‍स्‌ रोगियों से मिलते-मिलते उसकी भेंट व्याघ्री से हुई....व्याघ्री ने उसे सारी घटना रोते-रोते सुनायी - "यदि कोई और होता तो मैं उसका मुंह नोंच लेती सेक्सुअल्‌ औफर्‌ देने पर....पर यह दो लाख रुपये के औफर्‌ से मेरा मन लोभी हो चला था...." इसके पश्‍चात्‌ जय ने उसे सारी आपबीती सुनायी -कि जब वह बोट्‍ से नीचे जल में गिरा तो बोट्‍ से लटक रही एक जंजीर उसके हाथ आ गयी....वह उसका अवलम्ब ले ऊपर चढता बोट्‍ के नीचे पर सर पानी के ऊपर किया रहा, शीघ्र ही बोट्‍ किनारे पहुंचा...जय जयती की दृष्‍टि से छिपता तट पर जयती से दूर जा बालु पर आराम करने लगा.....उसका एटीएम्‌ कार्ड्‍ आदि सबकुछ सुरक्षित था, केवल कुछ भींग गया था....उसने कार्ड्‍, वस्त्र, आदि बालु पर सूखने डाला....कार्ड्‍ से पर्याप्‍त धनराशि निकाल कुछ दिन मुम्बइ पश्‍चात्‌ दिल्ली में एड्‍स्‌-पीडितों से मिलता रहा.....कि एक दिन जय उससे मिलता है...और आगे प्रतिशोध लेने की बात बतायी....व्याघ्री प्रसन्नता से जय का संग देने को उद्‍यत हो गयी कि मरने से पूर्व एक तो पुण्य का कर्म कर ही ले....उसके पश्‍चात्‌ व्याघ्री इन्टर्‌व्यू देने यौनानन्द ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी जाती है...वहां वीसी से सम्भोग कर पुनः मुखमैथुन के बहाने उसके शिश्‍न पर बहुत घातक एड्‍स्‌-विषाणु मल देती है... यहां से वीसी आदि का दुर्भाग्य आरम्भ होता है....सारी घटना सुनाता है अभी तक की...
यह सब सुन जानकर विजय स्तब्ध रह जाता है....कुछ पल शान्ति छायी रहती है......विजय - "ये यौनानन्द ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी का अब क्या होगा?..." जय - "मैंने तो स्पष्‍ट कहा था कि राज्य स्तर पर ओपेन्‌ य़ूनिवर्सिटीज्‌ न खोल सेण्ट्रल्‌ ओपेन्‌ यूनिवर्सिटी की ही शाखायें सभी राज्यों में खोलनी चाहिये...आवश्यकता अनुसार - एक, दो, तीन, चार, पांच......."
"ये नाम यौनानन्द कुछ विचित्र-सा नहीं लगता ? कैसे यह नाम पडा ? कुछ जानकारी इस सम्बन्ध में ......"
"मैंने इस यूनिवर्सिटी के इतिहास का अध्ययन किया था....किसी स्वामी यौनानन्द जी महाराज श्री श्री १००८ द्‍वारा इस विश्‍वविद्‍यालय की स्थापना कोई पांच-छ्‍ः वर्ष पूर्व यौन विद्य़ा और यौन साधना के प्रचार-प्रसार के लिये किया गया था...कुछ दबे स्वर में ऐसी जानकारी मिली कि एकबार एक युवती चार-पांच वर्षों से सन्तान न हो पाने कष्‍ट (कम्प्लेण्ट्‍) ले यौनानन्द के समीप आयी....यौनानन्द ने बताया कि सन्तान गारण्टी से हो जायेगा....पर इस साधना रखना होगा...एक भी व्यक्‍ति को नहीं बताना होगा, तभी फल मिलेगा....वह स्त्री मान गयी....यौनानन्द ने उसे साधना पर बिठाया....बडे ही चामत्कारिक रूप से उसके गाल, उसके बाल, उसके शरीर को सहलाया कि उस स्त्री को अत्यधिक आनन्द की अनुभूति हुई....तब धीरे-धीरे उसे उसने यौन आनन्द प्रदान करना आरम्भ किया...उस स्त्री को इतना आनन्द कभी नहीं मिला था....तत्पश्‍चात्‌ यौनानन्द ने उसे कहा कि वह इस बात को गुप्‍त रखे....वह श्रद्‍धा से सर नमा ’जी गुरुजी’ कह चली गयी....कुछ समय पश्‍चात्‌ उसे गर्भ आ जाने की सूचना मिली.....उसके पडोस में एक और स्त्री कुछ वन्ध्या-जैसी ही थी.....वह यह जान उससे पूछी कि सहसा यह गर्भ कैसे सम्भव हुआ!.....तब गोपनीयता के अनुबन्ध पर उसने उसका रहस्य बताया....यह द्वितीय स्त्री भी दौडी गयी यौनानन्द के समीप.....उसे भी गर्भ आ गया....दो से बात तीन तक...तीन से चार-पांच तक हुई....पर बात तो एक दिन खुलनी ही थी....वास्तविकता जान इन पांचों के पति एकत्र पहुंचे यौनानन्द के निकट....उस समय यौनानन्द साधना कक्ष में बैठा था.....पांचों ने यौनानन्द को पकडा- "हम तुम्हारे जन्माये को अपना बच्चा समझ कर पाले जा रहे हैं....चलो, यह हम कर लेंगे.....पर तुम अब और अपने बच्चे इस समाज को नहीं दे पाओगे.....क्योंकि हम करने आये हैं तुम्हारा अन्त, मरने को हो जाओ तैयार तुरन्त....." वह गिडगिडाया- "मुझे मत मारो, अब मैं और किसी को बच्चा नहीं दूंगा....." वे पांचों - "हम तुम्हें इस अनुबन्ध पर छोड दे सकते थे....पर क्या करें...मन हमारा हमारे वश में नहीं है.....हम मन के वश में हैं.....और हमारा मन हमें निर्देश दे रहा है कि हम तुम्हें मार ही डालें....जान पडता है कि तुम्हारे मृत्यु का समय आ गया है......." ऐसा कह वे उसे मारने लगते हैं.....
"मारना है तो मार डालो...ऐसे पीट क्यों रहे हो????"
"कैसे मरना चाहते हो...तुम्हीं बताओ...."
"मुझपर दया करो और मुझे छोड दो....."
"जैसी स्थिति हम सबके मन की है वह कहती है कि तुम आज मरे विना नहीं रहोगे.....मरने की विधि और कोई अन्तिम इच्छा पूरी करने तक की कृपा की जा सकती है...."
"मुझे छोड दो...."
"नहीं...."
"नहीं...."
"नहीं...."
कोई अन्य उपाय न देख यौनानन्द अपनी चटाई पर बैठा, कागज पर कुछ लिख चटाई के नीचे रखा, और उनसे बोला- "मेरी अन्तिम इच्छा है कि जबतक मेरी आंखें न खुलें तबतक मुझे न मारना.....और मेरे मर जाने पर ही इस चटाई के नीचे रखे कागज में जो लिख रखा है उसे पढना..." उनके मान लिये जाने पर वह आंखें बन्द कर समाधि में लीन हो गया....समय पर समय बीता जा रहा और वह आंखें खोलने का नाम ही नहीं ले रहा....उनमें एक व्यक्‍ति बाहर निकल द्वार पर ताला लगा दिया जिससे कोई वहां अन्तः न जाये....जब सायम्‌ सन्ध्या का समय आया तो सभी ओर गुरुजी को लोग ढूंढ रहे थे......इनसे एक ने यह फैला दिया कि गुरुजी गये दिल्ली अत्यावश्यक कार्य हेतु...कल प्रातः आयेंगे....रात के आठ बजे जब इन पांचों का धैर्य चूक रहा था तब उनसे एक ने आगे बढकर यौनानन्द के एक नयन की पलक उठायी....तो वह खुली की खुली रह गयी....यौनानन्द के प्राण निकल गये थे....मार खा-खा मरने के भय से उसने आत्महत्या कर ली थी....तब चटाई के नीचे लिखे कागज को निकाल सबने पढा...उसमें लिखा था--
”””मैं तो जा रहा हूं, पर जो काम मैंने यहां किया वह आनेवाले कुछ ही दिनों में चारों ओर बहुत तीव्र गति से और अन्धाधुन्ध फैलना आरम्भ करेगा....मां-पुत्र, पिता-पुत्री, भाई-बहन आदि सभी मन लगा विना लज्जा या भय के सम्भोग करेंगे...तब कौन बचा रहेगा...इस यूनिवर्सिटी औफिस्‌ में एक ऐसा शासक पदारूढ होगा जो विना भय यहां की सभी स्त्रियों को नंगे कर और विना नंगा किये भी ऊपर से नीचे तक चोदता रहेगा...तब उन स्त्रियों के पति, पुत्र, भाई, पिता,  तथा पुलिस्‌, शासन, आदि सभी सबकुछ जानकर भी चुप रहेंगे....कोई चूं तक नहीं करेगा....उसे किसी भी सांसारिक मनुष्य से भय नहीं होगा....उसे भय यदि किसी से होगा तो किसी मुमुक्षु एम्प्लौयी से होगा...यदि वह उस मुमुक्षु के विरुद्‍ध गया तो मुमुक्षु उसके विजयरथ के रुकने व अन्ततः मृत्यु के मुख तक उसके पहुंच जाने में प्रमुख कारण बन सकता है....”””’
यह पढ वे सभी वहां से चुपचाप निकल भागे....कुछ समय पश्‍चात्‌ जब किसी की दृष्‍टि गुरु के खुले द्‍वार पर गयी तो वह वहां आया और गुरु को मृत पा चिल्लाने लगा....विना गुरु अब यूनिवर्सिटी कैसे चले इसके लिये शिष्यों ने शासन से प्रार्थना की.....शासन ने उनकी बातें सुनीं और अनुदान देना स्वीकार किया इस अनुबन्ध पर कि यहां कई आधुनिक विषय भी सम्मिलित किये जायेंगे...."
विजय - "तो तुम सच में मुमुक्षु हो?......"
जय - "वैसे तो मेरे मन में पूर्व से ही अध्यात्म के प्रति नमन था, पर राघवेन्द्र कश्यप के आध्यात्मिक ज्ञान का अनुसरण कर मैं तो सच में ही अब इस अविद्‍या संसार से छुटकारा पा  दिव्यतम प्रकाश्स्वरूप आत्मा के रूप में निज की वास्तविक स्थिति को प्राप्‍त कर लेना चाहता हूं.....जयती के अन्यों के संग दिल्ली जाने के पश्‍चात्‌ तो मेरा वैराग्य और भी बढा है....कुछ समय के लिये वीसी के डर्टिएष्‍ट्‍ माइण्ड्‍ के प्रभाव से मुझमें एक्श्ट्रीम्‌ लैसिवियस्नेस्‌ फेल्ट्‍ होता रहा था.....पर जैसे-जैसे वास्तविकता समझ में आती गयी वैसे-वैसे मैंने अपने माइण्ड्‍ को उससे रक्षित किया....पौर्नोग्रैफी से जो एक्श्ट्रीम्‌ लैसिवियस्नेस्‌ फेल्ट्‍ होता है....वीसी के माइण्ड्‍ में भी वैसे ही प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता है.....वीसी का माइण्ड्‍ जीता-जागता पोर्नोग्रैफी है जिसने कितने ही मनुष्यों में अवश्य और अन्ध कामुकता उत्पन्न कर उन्हें अपने जैसा बनाने की ओर ले चला....उसने अपने पुत्र को भी नहीं छोडा था...."
विजय - "ये रामराज्य पार्टी के लोगों ने उसे  
विजय - "मुझे तो एक अलग दृश्य की हंसी आ रही है...."
जय - "कैसा दृश्य?..." विजय -"देखो....." - वीसी भगवान्‌ की मूर्ति के आगे खडा प्रार्थना कर रहा है..... भगवान्‌ - "बोल.... क्या मांगता ?" वीसी - "एक औफिस्‌ का...ऐसे औफिस्‌ का ऐब्सौल्यूट्‍ रूलर्‌ बन जाऊं कि जब चाहुं जिस किसी को अपमानित कर दूं, जब चाहुं जिस किसी को जौब्‌ से बाहर निकाल दूं एक्स्टेंशन्‌ न देकर या डिस्मिस्‌ कर.....जितनी भी स्त्रियां हों और जो नयी आयें सबको ऊपर से नीचे तक चोद डालुं और चुदवा दूं....कितनों को गर्भवती कर दूं....जितना भी आर्थिक लाभ लेना चाहुं लेता जाउं....और मेरी किसी भी बात पर इन एम्प्लौयिज्‌ के परिवार वाले या पुलिस्‌, शासन कोई भी चूं तक न करे...." भगवान्‌- "हूं....चलो...एवमस्तु....पर किसी मुमुक्षु को अपमानित, आदि न करना, क्योंकि वह चूं कर सकता है....और परिणाम में तुम्हारी पूं भी हो जा सकती है...." वीसी -  "मुमुक्षु....हूः....मुमुक्षु का क्या सामर्थ्य जो मेरे समक्ष सिर उठा सके....मैं उसको बुभुक्षु कर दूंगा.....अच्छा भगवन्‌...थैंक्यू....अब आप चलिये....मैं भी चला अन्वेषने कोई चार्मिंग्‌ ब्यूटी....."
जय विजय दोनों हंसने लगे...।

दृश्य  ३४- जय पुनः अपने पुराने जौब्‌ पर जाने को बस्‌-ष्‍टौप्‌ पर खडा है.....तभी एक कार्‌ वहां आकर रुकती है....उससे एक युवती निकलती और यूनिवर्सिटी औफिस्‌ की ओर बढती है....जय का उसपर ध्यान गया और उसके मन में सहसा कौंधा ’जयती !!!!’......उसकी आंखों के आगे इस कथा के आरम्भ का दृश्य तैरने लगा - ’अकस्मात्‌ मुझे तेरा यहां दर्श हो गया, लगता नया मिलन नहीं वर्षों वर्ष हो गया....’ पर यह तो कोई और है!!! उसकी आंखें अश्रुओं से डबडबाने लगीं......उसके हृदय में आह् भरी पीडा अनुभूत हुई....’जहां मैंने हृदय लगाया वहां से सुख तो बहुत मिला, पर वह था छल मिला हुआ....और वह भी ऐसा सुख मिला जो मुझे अन्ततः मृत्यु के मुख में ला पटका....जाने कैसे वे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला....जीवन भर आर-पार मिला....अगला जीवन भी संवार मिला....!!!’ उसकी आंखें समक्ष आ खडी बस्‌ से टकरायी....जिस बस्‌ से जाना था वह आ खडी हुई थी...बहुत ही पीडा भरे मन से उसने बस्‌ में पग बढा दिये, बस्‌ चल पडी....बस्‌ के पीछे लिखा था - The End


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